वियोग - कथा | Viyog Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
57
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(४)
लो--हे घन कै हरिण सलोने,
लो-यह ्रश्र -लङोका हार !
जहां मिले प्रियतम दे देना,
कह देना उरा उट्गार॥
(এ)
भाद्र-मास की कुह-निशा हे ।
जलद-जाल-पूरित है व्योम!
विस्तृत-विश्व विराव-हीन है
खिश घोर चहु दिशि तम-तोमा
(दि
मघोर में छिपे हण है
कलित कलाघर कुमुदिनि-कान्त
अन्धकार मे सटक रहे है,
पथ-परिश्रषए्र-पथिक-परिश्चान्तः
(७)
तो भी मार्ग न भूल इधर,
श्रा जाते मेरे प्राणाघार !
जिन्ह देख में नेत्र जुड़ाती,
पाती निस्मेल शान्ति अपार |.
জি
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