बापू के आशीर्वाद | Baapu Ke Aashiirvaad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जय रामदास दोलतराम - Jai Ramdas Dolatram
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“सब ईदवर करता हूँ और वह जो करता है वह अच्छे के ही लिये है, ऐसा समझ कर आनंद में रहो ।”
१३-११-४४
“रोना हँसना दिल में से निकलता है । (मनृष्य) दुःख मान कर रोता है । उसी दुःख को सुख मान कर हसता ह । इस-
लिये ही रामनाम का सहारा चाहिये । सज उनको प्रपंण करना तो प्रानंद ही आनंद है ।”
, १६-११-४४
इस प्रकार बापू मेरे उद्विंग्न मन की ज्ञांति के लिये मुझे हर रोज़ प्रबोध देते थे। उनको मेरे स्वास्थ्य का भी वराबर खयाल रहता
था। यद्यपि वह मुझे बार बार कहते थे कि में अपने बहिरेपन को “ईइवर की बच्छीश” समभूं, फिर भी में चिंतित रहता था। इस कारण
उन्होंने मुझे कुदरती इलाज के लिये भीमावरम् भेजने का निर्णय किया। में २८ नवम्बर को वहां जाने वाला थाश्रौर जैसे-जैसे बापू से
बिदा होने का समय निकट आ रहा था, में एक तरह की व्याकूलता अनुभव करता था। बापू के मीठे संसर्ग का और उनके प्रेरणा
देनेवाले उपदेशों का में ऐसा आदी हो गया था कि उनसे जुदा होना मुझे कठिन-सा जान पड़ता था। में इसी चिंता में था कि मन में एक
विचार उठा । कैसा भ्रच्छा हो यदि बापू मेरे लिये हर रोज़ कुछ न कुछ लिखते रहें और मुझे भीमावरम् डाक द्वारा भेजते रहें !
दूसरे दिन सवेरे, मेंने बड़े संकोच के साथ बापू से यह बात कही! बापू ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और कहा:
“तुम्हारी बात तो अच्छी है, इस पर ज़रूर विचार करूँगा।” दो-तीन दिन के भीतर ही बापू ने लिखना स्वीकार कर लिया। मुभे
बेड़ी खुशी हुई। मेंने एक अलबम बना कर उनको दे दिया। २२ श्रक्तूबर को जब बापू ने अपने प्रसन्न मुख से मुझ से कहा : “आनंद,
मेंने तुम्हारे लिये लिखना शुरू कर दिया है, और वह भी २० ता» से”, तब में खुशी से फूला न समाया, और एकाएक मेरा सिर
सच्ची कृतज्ञता से उनके सामने कुक गया । उन्होंने २० ता० का जो विशेष उल्लेख किया, उसका महत्त्व में ठीक ठीक समझ गया; क्योंकि
उस दिन को में बहुत ही पवित्र मानता था और विद्या की याद में हर महीने मनाया करता था। उस दिल (२०-१ १-४४) से क़रीब
दो साल तक बापू रोज़ मेरे लिये और विद्या की स्मृति में एक उपदेश लिखते रहे ।
[ १६ |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...