सहकारिता आन्दोलन में दुग्ध सहकारिता की भूमिका एवं योगदान | Sahkarita Andolan Me Dugdha Sahkarita Ki Bhumika Avam Yogdan

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Sahkarita Andolan Me Dugdha Sahkarita Ki Bhumika Avam Yogdan by सुरेश चन्द्र यादव - SureshChandra Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिपक्ष्य में 1895 से ही जस्टिस रनाडे के सतत्‌ प्रयत्नों के प्रयास से ग्रमीण ऋण को हल करने के लिए कृषि बैंको की स्थापता की गई। उ0प्र० में डूपर्नक्स की सहायता से ग्रामाण ऋण समितियों के गठन की उल्लेखनीय पहल थी। सर्वप्रथम 1904 में सहकारी साख समिति अधिनियम पास हुआ। तत्पश्चातू 1912 में पुनः सहकारी साख अधिनियम पारित होने से समाज भँ चेतना जागृत हई इस अधिनियम के पारित होने के 2 वर्ष बाद लगभग 15000 सहकारी साख समितियों गतिशील थी। 1915 में मैकलेगन समिति गठित हुईं, किन्तु इसकी अनुशंसा का क्रियान्वयन प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने से न हो सका .।. 1919 में मटिग्यू चेम्सफोड सुधारों के फलस्वरूप सहकारिता को राज्य सरकारों का विषय बनाया गया। 1935 में रिजव बेंक की स्थापना से सहकारी समितियों को बल मिला। 1945 की सरैया समिति की अनुशंसा से सहकारिता को अधिक गति प्रदान हृ६। वस्तुतः 195। से देश में योजनाबद्ध सहकारिता का प्रारम्भ हुआ। स्वीकार्यतया आध से अद्यतन तक इस मानवीय चेतना (सहकारिता) का दिश्दर्श समाज में पूर्णतया परिलक्षित हैं। सहकारिता एक मानवीय चेतना है इसे राजनैतिक परिसीमा में नहीं परिविछित किया जा सकता है। न किसी बाद तक सीमित ही किया जा सकता है। सहकारिता मानवीय आवश्यकता के साथ ही साथ विकास की कुंजी भी है, जिसमे आर्थिक लाभ के साथ ही साथ नैतिक लाभ भी परिलक्षितं होता है। लोगों में मद्यपान, जुआखोरी व बुरी प्रवृत्तिर्यो का अंत होता है। इसके स्थान पर॒ परिश्रम, लगन, कर्तव्यनिष्ठा, परस्पर सहयोग एव॑॑स्वालस्बन के गुण परिलक्षित, पल्लवित व पुष्पित होते हैं। इस प्रकार उपरोक्त बातें होने पर निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि सभी चीजों के बाद सामाजिक परिवर्तन होकर, समाज में सहकारिता नव जीवन का संचार करती हे।




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