सूक्ति - सुधारस चतुर्थ खण्ड | Sukti Sudharas Chaturth Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख््पूति जिनशासन में स्वाध्याय का महत्त्व सर्वाधिक है । जेसे देह प्राणों पर आधारित है वैसे ही जिनशासन स्वाध्याय पर । आचार-प्रधान ग्रन्थों में साधु के लिए पन्द्रह घंटे स्वाध्याय का विधान है । निद्रा, आहार, विहार एवं निहार का जो समय है वह भी स्वाध्याय की व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए है अर्थात्‌ जीवन पूर्णं रूप से स्वाध्यायमय ही होना चाहिए एेसा जिनशासन का उद्घोष है । वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा ओर धर्मकथा इन पांच प्रभदों से स्वाध्याय के स्वरूप को दर्शाया गया है, इनका क्रम व्यवस्थित হন व्यावहारिक है । श्रमण जीवन एवं स्वाध्याय ये दोर्नो-दूघ में शक्कर कौ मीस के समान एकमेक ठै । वास्तविक श्रमण का जीवन स्वाध्यायमय ही होता हे । क्षमाश्रमण का अर्थ है 'क्षमा के लिए श्रम रत” और क्षमा को उपलब्धि स्वाध्याय से ही प्राप्त होती है । स्वाध्याय हीन श्रमण क्षमाश्रमण हो ही नहीं सकता । श्रमण वर्ग आज स्वाध्याय रत हैँ ओर उसके प्रतिफल रूप में अनेक साधु-साध्वी आगमज्ञ बने हैं । प्रात:स्मरणीय विश्व पृज्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरोश्वरजी महाराजा ने अभिधान गजेन्द्र कोष के सप्त भागों का निर्माण कर स्वाध्याय का सुफल विश्व को भेंट किया है । । उन सात भार्गो का मनन चिन्तन कर विदुषी साध्वीरत्नाश्री महाप्रभाश्रीजीम. को विनयसत्ना साध्वीजी श्री ड. प्रियदर्शनाश्रीजी एवं डो. श्री सुदर्शनाश्रीजी ने “ अभिधान राजेन्द्र कोष मे, सूक्ति-सुधारस'' को सात खण्ड मे निर्मित किया हैँ जो आगमो के अनेक रहरस्यो के मर्म से ओतप्रोत हैं । साध्वी द्य सतत स्वाध्याय मग्ना है, इन्हे अध्ययन एवं अध्यापन का इतना रस है कि कभी-कभी आहार की भी आवश्यकता नहीं रहती । अध्ययन- अध्यापन का रस ऐसा है कि जो आहार के रस की भी पूर्ति कर देता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस ७ खण्ड-4 ७ 9




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