मध्ययुगीन हिंदी साहित्य में नारी-भावना | Madhyayugeen Hindi Sahitya Mein Naari-Bhawna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आालोच्यकाल से पूर्व नारी की स्थिति १५
करती थौ? । दम्पति शब्द पति पत्नी के सम्मिलित स्वामित्व का यौतक था।
पत्नी पति के इंगित पर संचालित होने वाली काष्ट-पत्तलिका न-होकर, सुख दुःख
मे पतिन्को सहभागिनी थी । उस्र समय नारी का चरम विकास मातृत्व में स्थापित
हो गया था। माता श्रद्धा एवं आदर की पात्री थी* | माता का आ्राशीर्वाद जीवन
में सोख्य एवं कल्याण का आवाहक था। पत्र-जन्म श्रधिक आनन्द-जनक अवश्य
थ, किन्तु उत्पन्न होने के उपरान्त पुत्री भ्रसीम ममता एवं स्नेह की भागिनी हो
कर कनिका नाम से अभिहित होती थी ।
सामाजिक जीवन में स्त्रियों को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त थ स्त्रियों को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त थार । यह
उन्मुक्त प्रेम का युग था। सवन नाम के सावंजनिक उत्सवों में स्त्रियाँ भी भाग
लेती थीं“ । वंदिक-संस्कृति में स्त्रियां पूरुषो के ही समान उच्च चिकना प्राप्त करती
थीं। वेद और शास्त्रों में पारंगत होने के रतिरिक्तवे ऋचा्रोकौी रचना मी
करती थीं*_। साहित्य के साक्ष्य के श्रनुसार विश्ववरा, लोपासुद्रा, सिकता निवा-
অহী और घोषा ऋग्वेद कौ प्रतिभासालिनी कवयित्रियाँ है । उन लेखकों एवम
विद्वानों में जिनकी स्मृति में ब्रह्मय यजन के भ्रवसर पर नैत्यिक श्रद्धांजलि अ्रपित की
जाती है, सुलमा, मैत्रेयी, वाकः प्राचितेई, एवं गार्गी वाचकनवी हः 1 समाज में
एक पत्तीत्रत कौ मर्यादा मान्य थी, बहुपतित्व की प्रथा श्रप्रचलित थी । काला-
न्तर में श्रभिजात वर्ग में बहुविवाह प्रचलित हो गया? । कन्या एवं पति दोनों
को ही अपना जीवन साथी चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी* । बाल विवाह की प्रथा
४ १. सम्राज्ञो इबसुरे भव, सप्राज्ञी ब्वश्षवां भव; -
ननान्दरि सम्राज्ञी भव, सम्राज्ञी भ्रधि देवृषु । ऋरवेद १०।८५।४६
२. सी० बेंडर--विमेन इन एंशियन्ट इंडिया प० ६३, लंदन १६२५
३ . संगठन के सिद्धान्त और व्यवहार में स्त्रियों का स्थान बहुत ऊंचा था,
किसी प्रकार का,वरदा नहों था। साधारण जीवन के अलावा समाज के
मानसिक और धामिक नेतृत्व में भी स्त्रियों का हाथ था 1--बेनी प्रसाद
- हिन्दुस्तान को पुरानी सभ्यता पु० ५०, प्रयाग १९३१
भगवतशरण उपाध्याय--विमेन इन ऋग्वेद पृु० ४५, बनारस १६४१
५. हारानचन्द्र चकलेदार---सोशल लाइफ इन एंशियन्ट इंडिया, कल्चरल
हेरिटेज आफ इंडिया भाग ३, पु० १६७
में संग्रहीत
६. ए० एस० अल्टेकर --पोजीद्वन आफ विमेन इन हिन्दू सिविलिजेशन
पृ० १२, १९३८ काशी
७. राधाकुमुद सुकर्जी --हिन्दू सिविलिजेशन पृ० ७२, १९५० बम्बई
८. राधाकुमुद मुकर्जो--हिन्दू सिविलिजेशन पू० ७२, १९६५० बसम्बई
भगदतशरण उपाध्याथ--विमेन इन ऋग्वेद पृ० ४५, १६४१ बनारस
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