जेल में (दो संवाद) | Jail Mein (Do Sanvaad)

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Jail Mein (Do Sanvaad) by ब्रिजलाल बियाणी - Brijlal Biyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवेक या निबलता * ৯৫9০৯ ~ +. 9 - ^. ~ - ^, ८8. “< ७८५०... ८0) „५-५५-5 कि.-८ ®,“ , (2) _ ९. (93 ८. कक. >+ 6 . द). + --८ आवाज की वृद्धि। स्पष्ट श्रवण | धप्प-अ-धप्प-अ-धप्प-अं । दोनों प्रकार की ध्वनि निरंजन के कानों म॑ं से हृदय तक प्रवेश कर गईं । अंधेरी रात में, दर्शन के अभाव में भी, प्रकाश प्रगट हो गया। निरंजन समझ गया। उसके यार्ड में से गये किसी कंदी को वार्डर ने प्रसाद दिया है। जेल की भाषा में “ठोक किया है ”। निरंजन के पैरों में जरा भारीपन आगया । हाथ रुक गये । साल्विक संदाप रेषाय उसके चहरे पर सिच गयी । क्षण में विचार दोड़ गये । “ जैल में कितनी पाशविकता ! ! बिचारे कैदियों को मारना किस कारण ? कानून से मारना सना है। आखों के सामने यह सब किस प्रकार चलने दिया जाय ? ”? इन विचारों के साथ ही क्रिया की प्रेरणा। “ वाडेर को डांटा जाय ?!। अन्याय-स्थान की ओर जाने की प्रबल इच्छा । निरंजन की विचारमय क्षणिक निस्तब्धता दूर हुईं। जिधर से आवाज आई थी उधर देखने लगा। वार्डर के हाथ की लालटेन के प्रकाश मे केदियों को अन्य याड मे प्रवेश होते ओर वारर को वारा बन्द्‌ करते पाया । अपने याड का बन्द दरवाजा सामने दिखाई दे गया । बन्द॒ताला भी स्मृति प्रकाश में दिख गया। कितने तारे ? “अन्याय के आगे ताले लूगे। न्याय तालों में बन्द है। ”” निरंजन ने अपनी तात्कालिक निबेलता का अनुभव किया। विचारमग्न सामने के अहाते की ओर देखता वह अपने पलंग पर बेठ गया। अपनी उमड़ी हुई विकछ भावनाओं को विवेक संगीत की छोरी देकर शान्त करने छगा। कभी विचार व्यथित अवस्था में भावनायें स्फूर्ति देती हैँ ओर कभी भावना >विकल मन को विचार शान्ति प्रदान करते हैं। विचार ओर भावना इनका समन्वय ओर सहयोग जीवन का सच्चा बल है । निरंजन ने किसी व्यक्ति को सामने से तेजी के साथ भाते देखा। उधर उसका लक्ष्य आकर्षित हुजा । अपने साथियों में से कोद है, यष्ट अनुमान वह रूगा सका, पर अन्धेरे के कारण कोन है, इसका निर्णय नहीं कर सका। निरंजन अधिक तीव्रता से देखने रग। भागमनशील व्यक्ति भी र




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