त्रिशंकु: | Trishanku
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
121
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - Sachchidananda Vatsyayan 'Agyey'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृति ओर परिस्थिति १५
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इस स्थापना से को$ निस्तर नदीं है कि पुरानी संसरति मर रदी है, ओर संस्कृति
का प्रर दमरे जीवन-मरण का प्रइन है । यद्द दुहराने की आवश्यकता नहीं कि पुरानी'
व्यवस्था के ट्टने का कारण मशीन है। लेकिन मशीन-युग का जीवन ठौक क्या
परिवर्तन लाता है, यह सममकर ही संस्कृति पर उसका प्रभाव समझ में आएगा।
इसके लिए क्षण-भर आधुनिक मिक मजदृर और पुराने दस्तकार की तुलना कीजिए ।
आज के मजदर के लिए यह सम्भव है कि तीस या च.लीस या पचास साल तक एक
अकेली क्रिया को दुहराने मात्र के सहारे वह उतने समय तक अपने परिवार का पेट
पाल सके | मसलन नित्यप्रति आठ घण्टे तक सोपटी टर्तरे के ब्लेड को मोम में
डुबोकर पंक करने के लिए रखते जाना--बित्कुल सम्भव है कि पाँच-छः प्राणियों के
নন লী पालनेवाला व्यक्ति आयु भर यही एक क्रिया करता रहा है। | इसका
मिलान कीजिये पुराने छहार से--अपने वगे का कितना अनुभव-संचित ज्ञान, कितनी
लम्बी परम्परा उसकी मेहनत को अनुप्राणित करती थी | वह सब अब नहीं रहा, आज
के श्रमिक के लिए जीवन का অথ है एक निरथंक यान्त्रिक क्रिया कौ बुद्धिहीन
अनवरत आरत्ति | पुराना दस्तकार निरक्षर होकर भी शिक्षित और संस्कृत भी हे।ता
था ; आज का मजदूर जासूसी किस्से और सिनेमा पत्र पढ़कर भी घोर अशिक्षित है ।
उसकी जीवन की शिक्षा एक अकेली अथंदहौीन यान्त्रिक क्रिया तक सीमित है ।
अब आप सममः सकते हैँ कि केसे यन्त्रयुग जीवन में वह परिवर्तन लाता है जो
वास्तव में जीवन का प्रतिरोध है । हम लोगों में से जो यन्त्रयुग कौ बुराइयों पर ध्यान
देते हैं वे ग्रायः उसे एक आध्िक संकट के रूप में देखते हैं--बेकारी की समस्या के
रुप में । लेकिन प्रइन आथिक से बढ़कर सांश्कृतिक है। मशीन से केवल रोज़गार
नहीं मारा जाता, मशीन से मानव का एक अंग मर जाता है, उसकी संस्कृति नष्ट
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