त्रिशंकु: | Trishanku

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Trishanku by सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - Sachchidananda Vatsyayan 'Agyey'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृति ओर परिस्थिति १५ 276 (1676, 7०1 1०0 पद्$ 9 &००्‌ दप्ल्ला 4116 अत्‌ शना [०66 381 80000 911 20. 10170100 019 019 $09০০০১ 0870 145 1008 ९९॥४४९त 00 179৩ 8০1060, 00. 029 197 0150১ 1110 000 3070017 102805+ 01507 215 21047100196. [০৮/ 0০7 21০ 16108 7011007. 002. 45 एए (€ ০০103 ग 01 0616 01707 2:০---21620 012309111165 01 10111 0701111185 07. 09৩ 1)0161555 ০০01)077310৩,,, 01115 15 17150017026 [50812010105 0016 21001561,1171)5 1211569 120 171205 0১0 2113 9/62101)5 00৬7 01007 ৮৮০:০ 101000708 0০, ০৮0 23 0১7 1770. 71090 1010064 ০9 05 ০00205, 110 11000501121 1001704 9190 08 0],6 976110910019] 1501300, 0706 10107101108 01015 कणा आनील. 105 065 1502185098 9195 900 0106 019 78114. प्रत्‌ (€ 00200091055 [701 01716 प पराल्लोी 41161. इस स्थापना से को$ निस्तर नदीं है कि पुरानी संसरति मर रदी है, ओर संस्कृति का प्रर दमरे जीवन-मरण का प्रइन है । यद्द दुहराने की आवश्यकता नहीं कि पुरानी' व्यवस्था के ट्टने का कारण मशीन है। लेकिन मशीन-युग का जीवन ठौक क्या परिवर्तन लाता है, यह सममकर ही संस्कृति पर उसका प्रभाव समझ में आएगा। इसके लिए क्षण-भर आधुनिक मिक मजदृर और पुराने दस्तकार की तुलना कीजिए । आज के मजदर के लिए यह सम्भव है कि तीस या च.लीस या पचास साल तक एक अकेली क्रिया को दुहराने मात्र के सहारे वह उतने समय तक अपने परिवार का पेट पाल सके | मसलन नित्यप्रति आठ घण्टे तक सोपटी टर्तरे के ब्लेड को मोम में डुबोकर पंक करने के लिए रखते जाना--बित्कुल सम्भव है कि पाँच-छः प्राणियों के নন লী पालनेवाला व्यक्ति आयु भर यही एक क्रिया करता रहा है। | इसका मिलान कीजिये पुराने छहार से--अपने वगे का कितना अनुभव-संचित ज्ञान, कितनी लम्बी परम्परा उसकी मेहनत को अनुप्राणित करती थी | वह सब अब नहीं रहा, आज के श्रमिक के लिए जीवन का অথ है एक निरथंक यान्त्रिक क्रिया कौ बुद्धिहीन अनवरत आरत्ति | पुराना दस्तकार निरक्षर होकर भी शिक्षित और संस्कृत भी हे।ता था ; आज का मजदूर जासूसी किस्से और सिनेमा पत्र पढ़कर भी घोर अशिक्षित है । उसकी जीवन की शिक्षा एक अकेली अथंदहौीन यान्त्रिक क्रिया तक सीमित है । अब आप सममः सकते हैँ कि केसे यन्त्रयुग जीवन में वह परिवर्तन लाता है जो वास्तव में जीवन का प्रतिरोध है । हम लोगों में से जो यन्त्रयुग कौ बुराइयों पर ध्यान देते हैं वे ग्रायः उसे एक आध्िक संकट के रूप में देखते हैं--बेकारी की समस्या के रुप में । लेकिन प्रइन आथिक से बढ़कर सांश्कृतिक है। मशीन से केवल रोज़गार नहीं मारा जाता, मशीन से मानव का एक अंग मर जाता है, उसकी संस्कृति नष्ट




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