जगन्नाथ का रथ | Jagannath ka Rath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुत्थान हुआ, पुनः राषट्विष्ठच, पुनः क्लांति, शक्तिहीनता, नेतिक अवनति-यदह्वी गत सा वर्षोका फ्रांसका इतिहास है । जितनी बार साम्य-मंत्रा-स्वाचीनतारूपी आदर्शर्जानत सान्विक प्रेरणा फ्रांसके प्राणोंम जागरित हुई, उतनी ही वार क्रमशः रजाशुण प्रवक् होकर, ससवसेवा-विमुख आसुरी भावमे परिणत होकर स्वप्रवृक्तिको पूर्णे करनेके लिये सर्चेष्ठ জা ভ। জল, तमागुणके आविर्भावके कारण फ्रांस अपनी पृवेलंचित महाशक्तिकी खोकर प्रियमाण विषम अवस्था, त्रिशंक॒की नाई न तो स्वगमें आर न मत्येमें ही, पड़ा हुआ है। इस प्रकारके परिणामसे वचनेका एकमात्र उपाय है प्रबल रजःशक्तिको सत्वको सेवार्म नियुक्त करना । यदि सात्विक भाव जाग्रत दाकर रजःशक्तिका परिचालन करे ता तमागुणके पुनः प्रादुभावका भय भी जाता रहेगा आर उद्दयाम शक्ति भी »ंखलित आर नियंत्रित होकर, उच्च आदर्शसे संचालित होकर देश ओर जगत॒का हित साधन करेंगी । सत्वकी वृद्धिका साधन दे धमभाव-स्वार्थका इबाकर परमार्थ साधन समस्त शक्तिकों पंण कर देना-भगवानको आत्मसमपण करके समस्त जीवनको एक महान्‌ आर पवित्र यज्ञमं परिणत कर देना । गीताम कदा गया दे क्रः सखव आर रज दाना मिलकर ही तमकरा नाश करत हैं: अकेला सत्व कभी मी दमक्रा पराजय नहीं कर सकता । इसीखिये भगवानने संप्रति धघर्मका पुनरुत्थान कराकर, दमारे अतनिहित स्वका जगाकर, तव उसक वाद्‌ रजभललाक्तका समस्त देशम संचार किया | राममाहनराय प्रश्नति धर्मोपदेशक महदात्मागण सत्यको पुनरुदीपित कर नवयुगका प्रवत्तन कर गये है । उन्नीसवीं शताब्दिमं धर्मजगत्‌र्म जितनी जाग्रति हु उतनी राजनीति ओर समाजमे नहीं हुई। कारण क्षत्र प्रस्तुत नहीं था, अतण्व प्रचुर परिमाणमं बीज बोनेपर भी अंकुर दिखायी नहीं दिये। इसमे भी १०




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