प्रेमदीपिका | Premdipika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Premdipika by रावबहादुर - Raobahadur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रावबहादुर - Raobahadur

Add Infomation AboutRaobahadur

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ९ ) गोपियों को बिलखती छोड़ कर हरि के चङे जाने से रूपक रूप से यह अवश्य सिद्ध होता कि श्री कष्णावतार ने बेदान्त ( उपनिषद्‌ ) को अपने भक्तों के लिये अपयाप्त समझता । वेदान्त का प्रसिद्ध सिद्धान्त हैः-- ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः बेदाहमेत पुरुषं महान्तमादिस्यवणं तमसः परस्तात्‌ । तमेव विदिखाऽतिमूद्युमेति नान्यः पंथा विद्यतेडयनाय ॥ ओर इसी से प्र म मार्ग को उस्कृष्ठता दिखाई जो लोकिक़ रूप में अश्लीलता के आवरण से ढक गया | २. एक भागवती पंडित ने प्रसंगवश यह कह डाला कि द्‌एडक बन के महरि लोग श्रोरघुनाथ जी के सोन्दयं पर मोदित हो कर उनसे प्र मसिङ्गन की अभिलाषा प्रकट करमे लगे। इस पर श्रीरघुनाथ जी ने कहा कि श्रीकृष्णावतार में तुम लोग गोपी रूप धारण करके हम से मिलो । कस्याण के कृष्णाङ्क দু ও ध्वनित है कि गोपीजन तथा अक्रूर आदि सब हरि-भक्त साधू ही थे। यहां भी वही बात सिद्ध होती है कि महर्षि लोग जे ज्ञान मार्ग के अनुगामी थे, प्रममाग को उससे बढ़ कर मानने लगे। ३. संप्रदाय प्रदीप में लिखा है कि अप्रिकुमारों को मयोदा पुरुषोत्तम भगवान र।मचंद्र ने बरदान से द्वापर मे गोपिका भाव प्राप्त होकर भजनानन्द का फल प्राप्त हुआ । ४. यह भी रामावतार से सम्बंध रखता है। कहते हैं कि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now