योगदर्शन | Yogadrashan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषाभाष्यम हित-समाधिपाद । (৩)
जो यह तक किया जाय कि यथा विपयेय अनेक विषयम प्रति-
ক্গাহ়ুল্য है तथा विकल्प भी हैं, इस संदृह अतिव्याप्ति ( लक्ष्यसे भिन्न
वस्तुमे लक्षणकी मापि ) के निवृत्त रोनेकं अथं मेथ्याशब्द सूत्रम
कहाहै. तात्पय यह है कि, जब पदाथक होनेमें असत्यता नहीं,परन्तु
उसके ज्ञानमें दोष हे अथात् जैसा सत्यरूप पदार्थ है वसा ज्ञान न
होकर उसके विरुद्ध होता है यथा-आत्मा नित्य चेतनरूप है उसको
अ्रमसे अनित्य जड मानना: रस्सीकों अन्धकास्में सपे जानना
आत्मा व रस्सीका हाना असत्य नर हे, ज्ञान हानेमें मिथ्यात्व है
अनित्य होना व सपैका होना यह मिथ्याज्ञान विपर्यय है. विकल्पमें
{जस पदाथंका भ्रमसे स्वीकार ( अगाकार ) हांताह वह पदाथही
म्रिथ्या होता है, न केवल ज्ञान ॥ ८ ॥
यही खत्रम वणन करते ই:
शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशन्या विकल्पः ॥ ९ ॥
शब्दज्ञान अनुसार वस्तुका शून्य विकल्प ॥ ९ ॥
दो ०-शब्द श्रवणते होत है, वस्तुशुन्यको ज्ञान ।
मुनिवर ताहि विकल्प कह, लेउ सत्य जिय मान ॥९॥
मनुष्यके सींग सुनकर मानलेना विकल्प है. यद्यपि मनुष्य सत्य
हैं, सींग सत्य है; परन्तु मनुष्यका सींग सत्य नहीं है, ऐसा जानकर
भी किसीके कथनसे वा लेखसे प्रमाण विरुद्ध मानना विकल्प टे. तथा
चेतनरूप पुरुष टे यह जानकर षिना प्रमाण परीक्षा पुरुषमें चेतन्य
मेद मानना विकल्प है इत्यादि ॥ ९ ॥
®= कट
अभावमप्रत्ययालटम्बना वात्तानद्रा ॥ १० ॥
अभावज्ञानकों अवलम्बन करनवालो वृत्ति निद्रा है॥१०॥
द[०-आखल वस्तुका ज्ञान जय. रहूव बहा 1चतमाह ।
आशभ्रयज्ञानअभावके, निद्रावात्ति कहाहि ॥ १०-॥
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