पतिव्रता गान्धारी | Pativartaa Gaandhaarii

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Pativartaa Gaandhaarii by कात्यायनी दत्त त्रिवेदी - Katyayani Datt Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्मति हषं की बात है कि हिन्दी में ह्ियापयागी एक अच्छो पुस्तक ओर प्रकाशित हो रहो है | लेखक मद्दाशय की कृपा से मुझे छपने के पदहत्ते ही उसे देखने का झवसर प्राप्त हुआ है । इसक लिए में उनका कृतज्ञ ह । भारतवर्ष का सती-धम्में संसार में प्रसिद्ध है। इस देश की ख्लियां ने जिस उच्चता और हरढ़ता से अपने प्रम-धमं का पालन किया है वह श्रद्धा-जनक मी रै ग्रौर आश्चर्यं एवं कातूहल- जनक भी । पतित्रता गान्धारी क॑ चरित में यह बात और भी অভ কন से दिखाइ पड़ती है । गान्धारी के पति महाराज धृतराष्ट्र अन्ध স্র। इसलिए उसने भी नेत्र रहते अन्ध-भाव से अपना जीवन बिता दिया। वह शअ्रपनी आँखों पर बरावर पटो ब.धे रहा । দবি-হন লিল सुख से वच्चित रहे वह मेरे लिए त्याज्य है। उसके साधन रहें, पर मेरे किस काम क॑ | त्याग की हृद हा गई। इससे बड़ा ओर कान सा आदशे हा सकता हैं ? एसी प्रातः-स्मरणीया देवी का चरितरूपी पवित्र বল जिन्हांने मद्दाभाग्तरूपी समुद्र से उद्धृत किया है वे सचमुच प्रशंसा के पात्र हैं। आशा है, हमारो ग्रह-देवियाँ इसे हृदय में धारण करके उसकी शाभा बढ़ावेंगी |




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