दानवी लीला | Daanvi Leela

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Daanvi Leela by पं. चंद्रशेखर पाठक - Pt. Chandrashekhar Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व ए बह हक प्रारम्म । १९ लक््यीपति--“हमें जितना देना हैं, उसमें ही मकान बगीचा, जो कुछ है, सब नीलाम हो जायगा। मेंने बहुत कुछ सोच विचार कर निश्चित किया है, कि किसी तरह चार हज्ञार रुपये बच जायेंगे, जिसमें दो हजार तुम्हें मिलेंगे |” - तारका হভাল मुख क्षण भरके लिये विकसित हो उठा उसने शंकरकी ओर देखकर कहा--“तब तुम्हारी पढ़ाईमें कोई बाधा न पहुंचेगी ? क्यों सय्या, थे रुपये समाप्त होते न होते तुम्हारी पढ़ाई भी समाप्त हो जायगी १” शंकरकी आँखोंमें जल भर आया । उसने दृढ़तासे उसे रोक कर-- तारा, मेरा पढ़ना लिखना अब समाप्त हों गया। अब में क्या करूँगा, सो समय आनेपर बता दूगा | जबतक मदनऊजीसे भेंट नहीं होती, वबतक में कुछ भी निश्चय नहीं कर सकता 1 इसके बाद सब अपने अपने स्थानपर चले गये। यथा समय घनपतिरावकी ओद्ध दृहिक क्रिया समाप्त हुईं। साथ ही घनपतिराव ओर लक्ष्मीपतिराबका सम्मिलित कारबार भी उठ गया। मदनजी भी पूना आया। उसको दशा देखकर हीं सबको माल्दूम हो गया, कि वह वास्तवमें रोगग्रस्त था । जयन्त- पुर जाकर भी इन लोगोंने पता छगाया। परन्तु इस घटनासे द मदनजीका कोई सनन्‍्बन्ध न मालठ्म हुआ | कालृरायको पकड्ने- के लिये सरकारकी ओरसे बड़े बड़े जासूस नियुक्त हुए । परन्तु उसेनगिरफ्तार क़रनेका कोई सूत्र न मिलनेके कारण सभी हताश हो वेट । ९ . “^ #




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