देवी वीरा | Devi Veera
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वीरा' को फाँसी की सज़ा का हुक्म हुआ । किन्तु बाद में यह सज़ा
बदल कर उन्हें आजीवन कालेपानी का दशड दिया गया। अश्रपने
योवन-काल में कितनी सरगर्मी से उन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन में
योग दिया, श्रौर फिर, २० वर्ष तक जेल्लों की चहारदीवारी में बन्द
रह कर, उन कामों के पुरस्कार-स्वरूप उन्होने कैसी भयङ्कर यातनायें
सहीं, आदि बातों का सजोव चित्र इस आत्म-कथा में देखने को मिलता
है। रूस की जेलों और साइबेरिया के निर्वासन से, उन दिनों किसी
आदमी का जोवित लौटकर आना, सचमुच मौत के मुँह में से बचकर
निकल आने के समान था। सन्तोष की बात इतनी ही है कि ज़ार-
श्पही का दमन-चक्र देवी वीरा! को अत्यन्त पराक्रमी और साहसी
आत्मा को पीस डालने में असमर्थ रहा । इससे वे अपने जीवन-काल
ही में आ्राज़ाद रूस की भूमि पर स्वातंत्रय-सू्थ की सुन्हली रश्मियों का
प्रसार देखकर, अपने ओर उन स्वगीय साथियों के उद्योगों को सफल
होते इए देख सम्भे, जिनके জা आज़ादी की लड़ाई में, उन्हें कन्धे
से कन्धा मिलाकर, श्रपने शक्तिशाली शत्रुओं के জীব ক कर देने का
स्वर्ण अवसर मिला था ।
देवी वीरा के अनेक साथी अपने देश की आज़ादी की दीप-शिखा
पर पतडु की भाँति बल्षि चढ़ गये। अ्रपने जीवन में वे रूस के
स्वातंत्य-प्रभात के दशन भी न कर सके। परन्तु इससे क्या, उनके
पविन्रतम जीवन के बलिदानों का वह महत्त्व भुलाया जा सकता है, जो
रूस के नव्य राष्ट्र के निर्माण के लिए, उसकी नींव मै अपनी अस्थियाँ
गला कर, सदा के लिए विस्मृति के गहरे गात्त में गिर पड़ने से उन्हें
प्राप्त हे ? असल बात यह है कि वे वास्तव में स्वतंत्रता के पुजारी थे
ओर युद्ध में बड़े गोरव के साथ वीर-गति प्राप्त करके उन्होने उसका
पूरा मूल्य चुका दिया ! श्रपनी श्रमर कृतियों से उन वोरों ने रूस के
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