जलचर पक्षी | Jalchar Pakchi

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Jalchar Pakchi by जगपति चतुर्वेदी - Jagpati Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| | ' | = ¢.“ | ५ 4 पा 1 ॥ 1 ॥ हु + 4 , রা টু { ॥ ॥ | ॥ \ त = `` জা जलचर पर्ची संहार के लिए उद्यत होकर अपनी उद्र-पूर्ति करते हुए हमारी भी =, सहायता करते है | | ॥ : चाहों की तीत्र संतान-वृद्धि की कल्पना हंस नहीं करते होंगे | ५ पन्नों ने ज्ञात किया है कि चूहे एक-एक बार से ্াত-সাত कच्चे ४ है है तथा साल भर में छः बार संतान-उत्पत्ति कते है । नदं संतान भ ३२ साख पश्चात्‌ खयं संतानोत्पादन में प्रवृत्त हो जाती है। अतएव केवल एक जोड़े चूहे से साल भर में ही ८८० संतान उतन्न होजा सकती है । यदि इनकी संख्या न्यून करने का कोड साधन न दा र है इनकी भारी संख्या के उत्पात से हम त्राहि-त्राहि ही कर उठे । य এ । एक जोड़े चूहे की संतान को ही. अनियंत्रित रूप से बढ़ने तथा | বি सन्‍्तानोत्पादन करते रहने दिया जाय तो पाँच वर्षों में कुल चूहों की _ संख्या साढ़े नौ खरब हो जाय । कुशल यह है कि प्रकृति कभी इतनी अनियंत्रित जीव-सृष्टि होने ही नहीं देती। उसके नियन्त्रण के अपने अनोखे प्रबन्ध हैं। उन्हीं में हम शिकारी पक्षियों को भी _ जे १ छ हिसाबों को समझ कर हम कह सकते हैं कि शिकारी चिड़िया, आज एक चूहे को भी खाती है तो वर्ष भर में उसकी ८८० संख्या वृद्धि होने पर उस समय रुकावट डाल देती है | किंतु उलूक तथा अन्य रात्रिचारी पक्षी तो मुख्यतः चूहा का ही आहार करते है , चतएव उनके द्वारा इनकी यथेष्ट संख्या न्यून होती है । एक बार उलूक के उदर का निरीक्षण करने पर दो या तीन चूहों का ভু होना प्रमाशित हो सका है, परन्तु पत्तियों का पाचन प्रवल होता है, इसलिए वह्‌ दिन-रात में कई चूहों को आहार बनाता হীবযা। ६ রা ক पक्षियों का भोजन जह अन्न का दाना तया कीट, पतंग, चूहे .. आदि है वहाँ खेतों की निराई करने में सहायक रूप के भी पी




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