जगद्गुरु | Jagadguru
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला
तीसरा
दूसरा
त्ती सरा
दूसरा
तीसरा
जगद्शुरु
मेरे भाग्य में नहीं था जिसका क्षय कभी नहीं होता तो
दूसरा दान क्या लूँगा जो सबेरे लिया और संध्या को समाप्त |
अच्छा तो तुम यहाँ इस समय आये क्यों १
रात मीमासंक ने मुझे इस समय बुलाया था । तुम लोगों को
देखकर यहीं अटक गया । नित्य के इस धर्म-संग्रह के बाद
ही वे जो आदेश करें | मुझे जानते हैं वे और मेरे पहले
मेरे कुल की परम्परा को भी जानते हैं। जिस क्षण में उनके
सामने अर्थी बन कर खड़ा हूँगा'''नीचे घरती फटेगी ओर
मैं उसमें समा जाऊँगा।
अच्छी बात, अब तुम अपना भय निकाल दो नहीं कहना
है मुझे
तुम्हारे चित्त को गगन-विहारी बनाने के लिए मैंने मय का
अभिनय किया था। आचार्य कुल में वेद और व्याकरण
जो पढ़ा वह तो अब भूल गया**'अभ्यास का फिर अवसर
न मिला और बिना अभ्यास की विद्या टिकती नहीं | पर
सदैव निर्भय रहने की... महिष पर बैठे यमराज के दर्शन में
भी निर्भय रहने का संकल्प जो आचार्य के सामने लिया
उसे न भूल सका। विधाता दूसरे जन्म में भी संस्कार रूप
से वह मेरे भीतर रहने दे यही कामना है'*'इस जीवन में
यह संकल्प श्रव क्या छूटेगा! तुम्हारे चित्त मे जिस कार्य
से सुख आये तुम वह करो ।
हूँ कमल के पत्ते पर पानी अब नहीं चढ़ रहा है तब तो
मुझे वही
हाँ भाई तुम वही करो । नगर भर में कांस्य-कोशी बजाकर
. कह आओ माधव मीमांसक का दान अहण करता है ।
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