व्याकरण-कौमुदी [द्वितीय भाग] | Vyakaran-Kaumudi [Dwitiya Khand]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८...» व्याकरण-कोमुदी, द्वितीय भाग ।
[प8०४07) ह्वादि (1910 ००४|०६०४०४), खुरादि (1७१४
८0४1८९2० य॑ दसं यण हः (१)
साधारण नियम (कलालः (४168) }
४। विभक्ति का अकार अयवा एकार परे रहने से पूवः
वतीं अकार काः व्योष होता है (२) यथा, मव-अन्ति, भवन्ति
सेव-ए सेथे ।
५। विभक्ति काम अथवा व परे रहने से पृ्वंचर्ती अकार
के स्थान में आकार होता ই (ই) । यथा, मव-वस्, भवावः `
भव-पत्त्, अवामः ।
६1 अङ्गार द परस्यित अते, अथे, आताम्, आथाम्
इन कई पक विभक्तियों के आकार के स्थान में इकरार होता
है (४) । यथा, सेव-आते, सेवेते; सेद-आथे, सेबेथे; सेव-
आताम्, सेवेताम; सेव-आथाम, सेवेधास। `
७। अकार के परस्थित विधिलिङ् के “युस्” के स्थानमें
इयुस् ओर “याम” के स्थान मँ इयम् होता है ; तद्धिन्न समस्त
या भाग के स्थान मेँ इ होता है (५)। यथा, भव-युस्, भवेयुः;
भकझयाम, भवेयम् ; भव-यात्, भदेत; भव-यातम्, भवेतम |
. ८। अकार के ओर उ, नु इन दोनों आशर्मों के परस्थितं
हि विभक्ति का छोप होता है (६) | यथा, भव-हि, भव; कुरू-
हि, कुछ; शणु-हि, श्णु | छु अन्य वर्ण के साथ संयुक्त रहने से
हि विभक्ति का छोप नहीं होता । यथा, आप्नु-हि, आप्जुहि ।
পপ পপ পরপর 1 पिके
तुदादिश्च हघादिश्च तनक्रयादिन्युरादयः ॥
(२) भतो रणे (३) अवो दीर्घो याड । (४) आतो डितः । (८) भरो
थेयः । (६) भतो हेः । उतश्च प्रसयाइसयोगपूर्व्बति ।
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