मानस अनुशीलन | Manas Anushilan

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Manas Anushilan  by शम्भुनारायण चौबे - Shambhunarayan Chaubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ স.১ লালা খা, अर्थात्‌ छ एक छुल्ले का रहता था ओर उसके उपर काः छुल्ला च का होता था। उस काल की सभी हस्तलिखित पोथियों में प्रास चछ के वैसे रूप से यह बात निर्विवाद है। इसका अथ यह हुआ कि वस्तुतः वैसे शब्द रिच्छ आदि ही हैं, न कि वैदिक स्वर से युक्त रिछुड आदि। देवनागरी लिपि की जैन शैली में च्छ का यह रूप अभी भी चल रहा है। सुधाकर जी ने अपनी प्रस्तावना में उपपत्ति को है कि १७२१ वि० की कलामवनवाली मानस की प्रति के “उपयोग करने का अवसर अगर मिश्र जी ( आचाय विश्वनाथप्रसाद जी मिश्र ) को मिलता तो संभवतः उनका यतन ( चौरे जी से ) एकरूप होता 1” (पष्ठ ४०) इस संबंध में निवेदन है कि उनकी ओर से श्री रामादास शास्त्री ने कलामवन में बैठकर इस १७२१ वि० वाली प्रति से मानस की एक प्रति का संशोधन किया था, जतु उसका उपयोग संपादन मे नदीं किया गया | यदि कलाभवन के नियमानुसार वहाँ की कोई हस्तलिखित पुस्तक बाहर नहीं जा सकती तो उसका फोयेस्टैट तो ट्रस्ट करा ही स्कताथा। वि सुधाकर जी ने अपने व्यापक सर्वेक्षण में गोसाई जी के प्रामाणिक चित्र का विषय भी उठाया है ओर नागरीप्रचारिणी समावाले चित्र को मान्यता देते हुए कहा है-- _ 'ज्ञो कुछ भी हो, तुलसी का जो चित्र बहुप्रचारित हुआ और जिसे सभा ने प्रकाशित किया, उसमे भले ही कुछ काल्पनिक परिवतन हुए हों, आकृति उस चित्र की उपलब्ध अधिकांश चित्रों से मिलती है, उसे देखते हुए यदि इसे तुलसी का चित्र माना जाय तो अनुचित न होगा ।' [र . इस संबंध में यह कहना आवश्यक है कि तुलसी के इस चित्र की प्रामाणिकता अब असंदिग्ध है। पिछले पच्चीस तीस बरस की खोज में मुझे लगमग एक दजन पुराने कलमी चित्र एवं रेखाचित्र देखने में आए, हैं ( जिनमें से कई एक कलामबन-को प्राप्त भी हो चुके हैं ) जो




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