वीर हम्मीर नाटक | Beerhamir Nataka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¢ क वीर हम्मीर नाटक च नाम हमीर महारणधीर को गाथंकहों सुलहो जगमें जस। नायक हौ अभिनायक के ममबेन परार धरो हियमानस ॥ (गाते हुये एक ओर चला जाता हैं) सूत्रधार--( नंगे से) भद्रे ! देखा यह कोन थे: इन्हें. पहचाना नरी--प्यारे ! ये तो कोई महान्‌. योगीश्वर जान पडते थे) सूच--(पुस्तक का आदि पृष्ट देख कर) घरानने । इसपर तो शिवका चित्र हे (अचम्भे से) झरे ! तो क्‍या वें स्वयं फेलाश पती शंकर थे और यह नाटक इन्‍्हींने लिखा है? ` नटी--(कुछ कर और पुस्तक देखकर) नाथ वारुतव में इसपर জী “লু? छ्खाहै! ` सूच--हां प्यारी ,!! इसी से तो मुम्हे शंका है यदि यह बात वास्तव में टीक है कि इसके रचयिता स्वयं झादि नाव्यकार तिपुरा सुरारी जग उपकारी महांदेव हैं ? तो यह समस्त रक्खो कि इस विचरे दीन हीन देश भारत का वर्य उद्धार होगा । टी--हां ! प्यारे !! अंच्छा तो-अब লাস, अवश्य इसी का अभि नय करो ओरं देर न करो, देखो तो दशक मण्डली केसी उत्सुकता भरी कटठात्ष कर रही हे । सूृत्रंधांर--अच्छा तो चलो यवं शीघ्रता करनी चाहिये । (दोनों गाते हैं ऑर एक ओर को चले जाते है ) लावनी ০ अब करहु वीरवर भारत्‌ की शुभ আকা




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