द्विवेदी युगीन खण्डकाव्य | Dwivedi Yugin Khandkavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
379
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= : द्विवेदी-युगीन खण्ड काव्य
लक्षण के प्रमाण में दिये गये उदाहरण श्रम उत्पन्न करते हैं। आचायें
विश्वनाथ ने खण्ड-काव्य के उदाहरण रूप मे भेघदूत' का नामोल्लेख किया
है और रुद्रट के टीकाकार नमिसाधु ने मेघदूत' को रूघु प्रबन्ध काव्य का
उदाहरण माना है। इस प्रकार लक्षण के आधार पर जहाँ लघु प्रबन्ध काव्य
और काव्य (आचार्य विश्वनाथ द्वारा उल्लिखित) एक रूप लगते है, उदाहरण
से खण्ड-काव्य और কথ प्रबन्ध-काव्य की एकरूपता सिद्ध होती है ।
हिन्दी में खण्डकाव्य की अवधारणा
हिन्दी में खण्ड-क्राव्यः शब्द खड़ी' बोली की' काव्य रचना के साथ
प्रचलित और प्रप्तिद्ध हो गया । द्विवेदी युग के कुछ कवियों ने तो अपनी
काव्य रचना का नाम देने के साथ ही उसके खण्ड-काव्य होने का भी उल्लेख
कर दिया | कुछ ने खण्ड-काव्य के साथ प्रेम-रसनपुणे' या “खोक कथा पर
आधारित जसे विशेषणो का भी प्रयोग किया है। किन्तु हिन्दी के रचनाकारों
ओर आलोचकों मे प्रबन्ध-काव्यके केवरुदो भेदों को ही मान्यता मिल
सकी--१. महाकान्य, २. खण्ड-काग्य । कविराज विश्वनाथ का काव्यः
नामक भेद लगभग लुप्त हो गया । इधर विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने प्रबन्ध
काव्य के भेदों पर विचार करते हुए इस तीसरे प्रबन्ध भेद को एकार्थे-काव्य
की संज्ञा दी और पहली बार उन्होंने प्रबन्ध काव्य के महाकाव्य, एकार्थ
काव्य और खण्ड काव्य ये तीन भेद माने ।' द
हिन्दी' में खण्ड-काव्य की स्थिति, उसके लक्षण तथा स्वरूप निर्धारण
सम्बन्धी मान्यताओं को समझने के लिए यहाँ उन प्रमुख आलोचक विद्वानों
के मतों पर विचार कर लेना आवश्यक है जिन्होंने प्रबन्ध-काव्य के भेदों
अथवा केवल खण्ड-काव्य पर विचार किया है । ग्रुलाबराय ने काव्य
के रूप' में साहित्य के समानार्थी के रूप में काव्य” शब्द का प्रयोग करते हुए
उसके श्रव्य और दृश्य दो भेद किये हैं । फिर उन्होंने श्रव्य काव्य के दो भेद-
मुक्तक और प्रबन्ध माने। पुनः उन्होंने प्रबन्ध काव्य के दो भेद किये-(१)
खण्ड काव्य ओर (२) महाकाव्य । इस प्रकार गुलाबराय के अनुसार प्रबन्ध
काव्य के केवल दो ही भेद होते है--खण्ड काव्य জী महाकाव्य । इनके
मध्यवर्ती किसी भेद की कल्पना उन्होने नहीकी1 :
खण्डकाव्य कौ परिभाषा देते हृए गुलाब राय लिखते हैं--खण्डकाव्य
मैं प्रबन्ध काव्य का सा तारतम्य तो रहता है किन्तु महाकाव्य की अपेक्षा
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