श्री स्वामी रामतीर्थ | Shree Swami Ramtirth
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य का च्चादृत्व. .
यहाँ तो किसी तरह के भेद् के लिए ज़रा भी स्थान नहीं दे,
यहाँ अश्रातृत्व से अधिक है । “महुष्य की एकता और
संयुक्क एकता” अच्छा शीर्षक होता | आप कहेंगे, फि “आस्मा
सम्बन्धी अजुमानों से हमे हैरान न करो, तुस सदा हम से
आत्मा या स्वयं की चचौ करते दो । यह तो वड़ा दी सूम
विपय है” । अच्छा, बहुत ठीक, यदि ठुंम आत्मा के बारे मे
झुनने को राज्ञी दो तव तो बातचीत के लिए गुजायश नहीं
है, और सब मामला तुरन्त समाप्त हो जाता है। कम से कम
इस विपय में हम सव एक हैं, काई-शब्द उस अचस्था को
नहीं पहुँच सकते, कोई भाषा वहाँ नहीं जा सकती। किन्तु
यदि तुम आत्मा के बारे में नहीं सुनना चाहते हो जो शब्दों
से परे है, तो राम स्थूलतम स्थिति-बिन्दु से ही मामले फो
डठावेगा । हम स्थूल वेद से शुरू करेंगे, वह अति स्थूल है ।
यदि हम आत्मा की प्रकृति को त्याग भी दे, यदि हम आत्मा
फो सच्चा अपना आप न भी समझे, तो स्थूल शरीर भी
सिद्ध करते है कि तुम सब एक दो । सब मन प्रमाणित करते
हैं कि तुम सव एक दो। भावना के लोक में सी विज्ञान
सिद्ध करता है .कि तुम सब एक दो; स्थूल लोक पर, मान-,
सिक लोक पर, युद्धम ल्लोकं पर तुम सव धक ष्टो यदि तुम
पेखा नदीं समभे, यदि तुम अपने मल्ली नित्य. के जीवनः
में उस श्रादत्व फा व्यवद्ार नहीं करते तो तुम अत्यन्त पवित्र
सत्य को भग कर रहे दो | तुम जानते हे। कि जो मनुष्य राज्य
के क़ानूनों के विरुद्ध दस्त अन्दाज़ी (दरुताक्षेप) करने की चेष्टए
करता टै वह दंड पाता दै, द कोरा नदीं वच सकता | इसी
झकार जो लोग इस अ्रातृत्व को नहीं भान करते और नित्य
के जीवन में इस आउ्त्व को झमल में नहीं खाते, उन्हें दरड'
জলা पड़ेगा। इस दुनिया फी सारी व्यथा, इस विश्व की
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