कुन्ती एक माँ | Kunti Ek Maa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शिवा शंकर त्रिवेदी - Shiva Shankar Trivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वाभाविक थी। লাজ শী यह झ्ावश्यक है, भ्रत चल रही है। यही
चिन्मय की भ्रभिग्यक्ति का प्रत्यक्ष प्रवाह है, उसकी प्रकृति है ।
प्रस्तित्व को यथावत् बनाए रखने की प्राकृतिक चेष्टा फो
वैज्ञानिक प्रष्ययन দি লন ( {7161128 ) कवा जाता है 1 जढत्व
नवरूपता के लिए रबत ही प्रतिरोधी वन जाता है| इस प्रकार जड
पदार्थों का जरुत्व जीवन के विकास तथा चिन्मय फी पझ्भिव्यक्ति के
मार्ग में प्रतिरोधी बल बन जाता है | वस्तुत जड़ पदार्थों फी समग्र
प्रन्तर्वाह्मय शक्तियाँ प्राणशरीरी जीवन के अस्तित्व के लिए प्रतिरोधी
या विरोधी वनी रही भौर भव भी हैं। इस स्थिति में जडत्वगामी
शक्तियो की प्रतिक्रियात्मक शक्ति प्राणशरीरीमे स्वत ही उदृभरुत
हो गई। इस प्रतिक्रियात्मक शक्ति मे विश्व की दृश्य-प्रदृदय तभी
क्रियाप्रों की, जो जीवन तथा चिन्मयन की विरोधिनी थीं,
प्रतिक्रियाश्मक शक्तियाँ स्वत ही पुजीभूत हो गईं | पह शक्ति
प्रतिक्रियात्मक ससार है । प्रहिक्रियात्मक शक्तियो का यही पुन्जी भूत
स्वरूप हमारा मनस् दै । पअ्रध्ययत-मनन की प्रयोजन-सुविधा के लिए
हम एक दृश्य रूपक का सहार। लें, तो यो भी कह सकते हैं कि
जड़ाभिमुख विष्व में प्राणक्षरीरी भ्रस्तित्व के लिए घातक जितने भी
प्रियासु है, उन समी के प्रतिक्रिया सूत्रों फी समष्टि ही
हमारा मनस्र है | चूकि जडत्वपोधी विदव का समुच्चय व्यापार ही
चिन्मयता का विरोधी है, प्रत मनस् समग्र विश्व के प्रतिक्रियात्मक
सल्कार का सकलित स्वल्प है । मनस् जडत्वपोपी विदव की
समग्रता का सचेतन प्रतिविम्ब है। जडत्वगामी विश्व जितनी शक्तियों
का क्रिपात्मक पुञ्ज दहै, मनस् उन सभी शक्तियों का प्रतिक्रियात्मक
श्रायोजन है 1
(घ)
User Reviews
No Reviews | Add Yours...