छत्रपति शिवाजी | Chhatrapati Shivaji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.16 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वराज्य का श्रीगणेश अर पिता पर संकट
बीजापुर श्रौर बंगलौर से लौटने के वाद शिवाजी ने श्रपना स्वप्त साकार करने के लिए प्रयास
झारम्भ किया । उस समय वे कुल सच्ह-अ्रठारह वर्ष के थे । आ्रासपास के प्रदेश की उनकी जानकारी पुरी
थी । किस जगह सुलतान की कितनी सेना है यह वे जानते थे । सभी प्रमुख देशमुख उनके समथंक वन
गए थे । साथियों का दल आर छोटी-सी सेना तैयार थी । समर्थगुरु रामदास, सन्त तुकाराम आ्रादि सन्तों
ने इसके पहिले ही लोगों के मन में अन्याय का प्रतिकार करने की भावना जागृत की हुई थी । शिवाजी
और उनके साथियों ने इस प्रेरणा की चिनगारी को ज्वाला का रूप दिया । छीघ्र ही जनता की
मनोभावना में परिवर्तन हुआ । बड़े-बड़े सरदार झब भी गुलामी में ही श्रपने को धन्य समभकते थे पर
साधारण जर्नता में कुछ करने की इच्छा सदियों के बाद जायुत हुई ।
पुना के श्रासपास का प्रदेश अरब शिवाजी के हाथ में था । इसके बाद उन्होंने किलों की आ्रोर
हाथ बढ़ाना श्रारम्भ किया । महाराष्ट्र में बहुत से किले हैं श्रौर उस समय के लड़ाई के तरीकों में किलों
का बड़ा महत्व था । उस समय तोपें छोटी होती थीं और दास्त्रास्त्र भी पुराने ढंग के ही थे । जिसके पास
किले हों वह आसपास के प्रदेश पर शासन कर सकता था ।
कहा जाता हैं कि शिवाजी ने सबसे पहिले तोरणा किले पर कब्जा किया । इसकी मरम्मत
कराते समय उन्हें बहुत सा गड़ा हुद्ना धन मिला । इन धन से उन्होंने तोरणा के पास के एक पहाड़ पर
नया दुर्ग बनवाकर उसे नाम दिया राजगढ़ । काफी समय तक राजगढ़ पर ही उनकी राजधानी थी ।
कुछ लेखकों का मत है कि शिवाजी ने सबसे पहिले तोरणा नहीं पुना के निकट का दुर्ग
कोंडाणा, जिसे अरब सिंहगढ़ कहते हैं, लिया । उनके गुरू दादा जी बीजापुर के सुलतान की श्रोर से इस
किले के सूबेदार थे । जब उनकी सृत्यु हुई तो शिवाजी ने बीजापुर से नया सूवेदार श्राने के पह्ठिले ही
इस किले पर कब्जा कर लिया । दादाजी की मृत्यु शिवाजी के लिए एक बड़ा श्राघात था । उनका
मार्गदशंक श्रौर गुरू उनके जीवन कार्य के श्रारम्भ में ही विछुड़ गया । पर छोक करने के लिए समय
नथा। वे जानते थे कि गुरू के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजली उनके बताए हुए मागं पर चलकर स्वराज्य
की स्थापना है । झ
वीजापुर के सुलतान ने पहिले शिवाजी के प्रयास को लड़कों का खेल समभझ कर उस श्रोर
कोई ध्यान न दिया । पर जब उसे पता चला कि शिवाजी ने तोरणा, कोंडाणा, रोहिड़ा भ्रौर पुरन्दर
जैसे किलों पर कब्जा कर लिया है श्रौर राजगढ़ का नया दुर्ग वनवाया हैं तव वह चुप न रह सका : इस
प्रदेश के रहने वालों ने श्रव लगान थी सुलतान के खजाने में नहीं शिवाजी के खजाने में देना शुरू किया ।
भारम्भ में शिवाजी का कार्य गुप्त रीति से और सुलतान के प्रतिनिधि के रूप में हो रहा था, पर शीघ्र
ही उसका वास्तविकस्वरूप प्रकट हो गया ।
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