कल्पना साहित्यिक तथा सांस्कृतिक द्वैमासिक पत्रिका | Kalpna Sahityik Tatha Sanskritik Dwaimasik Patrika

Kalpna Sahityik Tatha Sanskritik Dwaimasik Patrika by आर्येन्द्र शर्मा - Aaryendra Sharmaडॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh

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डॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि च कत्पता अग्रल्ल, १६५१ त चन्य भाषाओं के उत्तमोत्तम न्थ के चरच्छे श्रवुवाद, सूयान्तर अथवा বলছ” হী নাং किये जा सकते है | रेडियो और हिन्दी समाचार-पत्रों का तथा केन्द्रीय ओर प्रान्तीय तरकार के दिभिक विभायों का দিতি গা জার भी तथी ठीक चल सकेया जब अंग्रेजी के सहारे हिन्दी अपना शब्द-संडार तम्पत्र बना ले | यह काम जनता का नरह | जनता कौ जिन शब्दों की आवश्यकता होती है, उन्‍हें वह अविल्लम्व वना लेती है | छल्रत: जनता के बनाये हुए तैकडोँ विदेशी शब्द चरूदित, रूणन्तरित अथवा विक्ृत हो कर हिन्दी में समा- विष्ट हो बुके हैं | किन्तु वोद्धिक जीवन के लिए अपेज्षित शब्दावली जनता नहाँ बवाएगी-- उसे आवश्यकता ही नहीं है । हत शब्दावत्नी का निर्माण विद्वानों को करवा होगा | इत दिशा में कुछ काम पहले हुआ है, कुछ अ्रमी हाल में, कुछ अब हो रहा है । किन्तु जैता सर्वोग-पूर्ण और प्रामाणिक अंग्रेजी-हिन्दी कोष जपेक्षित है, वैसा न तो बना ही है, और व उप्तके बनने की कोई आशा ही दिखाई देती है! पुराने अेग्रेजी-हिन्दी ( बा-उर्दू, या -हिन्दुस्तावी ) कोषों में फेलन, गिलकरिस्ट, शेक्सपियर आदि के नाम लिये जा सकते हैं; वयों में रामवारायण लाल, भार्यव, आक्सूफोड आदि के | चुलत्तम्शत्तिराय भरडारी का अनेक भागों में अकाशित अय्रेजी-हिन्दी कोष तथा ग्रोलाना अच्दुल हक का अंग्रेजी-उर्द्‌ कोष भी उल्लेखनीय हैं | ढा. रइु॒वीर के शासन - तथा विज्ञाव-सम्बन्धी कोष और राहुल सांहत्यायन, विदानिवात्त मिश्र तथा ग्रधाकर माचवे का शासन-शब्दकोष अभी नचये-नये प्रकाशित हुए हैं | किन्तु ये तभी अधूरे, एकायी, ब्रुटि-पूर्ण अथवा पुराने हैं| हाँ, अप्रेज्षित कोप की तैयारी में ये सहायक अवश्य हो सकते हैं | डा. रघुवीर और डा, तिद्धेश्वर वर्मा एक “आंगल-सेस्कत-महाकोष”” तैयार कर रहे हैं। इस कोष के सर्वोग-पूर्ण होने की आशा है श्रौर यह हिन्दी के लिए बहुत दूर तक सहायक और यार्य-दर्शक का काम कर सकेया | 'फ़िर मी अंग्जी-हिन्दी कोष की अपेज्ञा रहेगी ही । प्रमाणिक तथा सर्वाय-पूर्स कोष प्रस्तुत रने का काम एक व्यक्ति के वश का नहीं: न एक व्यक्ति ऐसा कोष तेथर कर सकता है, न प्रकाशित करा सकता है। कोई तंस्था, अबवा ग्रान्तीय सरकार -- अथवा केन्द्रीय सरकार-इस काम को हाथ में ले और तत्र विश्नेषज्ञों का सहयोग ग्राप्त करे, तभी यह योजना सफल हो तकती है | किन्तु हमें यहाँ यह नहीं बताया है कि हिन्दी की উল तात्कालिक आवश्यकताः की पूर्ति कौन करे और क्रिप्त प्रक्वार करे | यह आवश्यकता 'तात्तालिकः है, इतना ही हमें निदिष्ट करना हैं | अगले अट्डू में हम हिन्दी की अन्य “तात्तालिकः आवश्यकताओं के विषय में अपने विचार अत्ठुत करेंगे




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