भारतीय आयकर के सरल सिद्धान्त | Bhartiya Aaykar Ke Saral Siddhant

Bhartiya Aaykar Ke Saral Siddhant  by रामनिवास लखोटिया - Ramnivas Lakhotiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ २ ] उत्तर : (अ) अपने कपड़े के नये व्यापार के लिए वह व्यापार के प्रारम्भकी तारीख से लेकर १२ महीने का कोई भी सुमय अपने गठ-वर्ष के लिए रख सकता है, यदि उसने हिसाव-किताव्र १९ महीने की अन्रधि तक के किसी भी समय के लिए वन्द कर लिया हो वो | यहाँ पर कर-दाता अपने नये ब्यापार के हिस्ाव-क्विाब १२ मासके समयके अन्दर के लिए रखना चाइता है इसलिए उप्तकी वात माननी होगी । इंस हालत में सन्‌ १६६२-६३ के लिए कोई गत-वर्ष नहो होगा चौर १-८-६१ से ३१-७-६२ तक की आमदनी सन्‌ १६६३-६४ में करदेय होगी। (व) चूंकि कर दाता ने अपने नये व्यापार के बही खाते १२ महिने के समय तक नही बन्द क्ए ই इसलिए कर दाता की प्रार्थना नहीं मानी जायगी। कपड़े के नये व्यापार की १८६१ से ३१०३-६२ तक की आमदनी कर-निर्धारण वर्ष १६६२ ६३ में करदेय होगी। प्रश्न संख्या २ भरी मदनके कई तरह के व्यापार हैं जिनके हिसावी साल निम्नलिखित हैं-- (१) सूती कपड़ा व्यप्पार--दिवालो न्धं ( सवम्वर से अक्टूबर/नबम्बर ) (२) लेन-देन व्यवसाय--वित्तीय वर्ष ( अपग्रेल से मार्च ) (३) तेल की फेक्ट्री--साधारण वर्ष ( जनवरी से दिसम्बर ) (৯) पुस्तक व्यवसाय--जुलाई से जून । कर-निर्धारण वर्ष १६६२-६१ के लिए कौन से वही-सखात्तों को सेंट ठीक रहेगा १ उत्तर :- करजनिर्धारण वर्ष १६६२-६३ के लिए निम्न व्यापारों के लिए निम्न वही-खातो का सैद ठीक येम (१) सती कपड़ा व्यापार--नवम्बर १६६० से नवम्बर १६६१। (२) लेन-देन व्यव्रसाय--१ अप्रेल १६६१ से ३१ माचं ₹£হৎু। (३) तेल की फेक्टरी--१ जनवरी १६६१ से ३१ दिखम्वर १६६१} (४) पुस्तक व्यवमाय--१ नाई १६६० से ३० जुन १६६१1




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