हमारी आर्थिक समस्याएँ | Our Economic Problems

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- भारतोय कपि की समस्याएं हुआ है पर छोटे किसानों को उस মানা मे लाभ नहों हुआ हैभितना सोचा जाना है । दूसरी जौवनोपयोगी सारौ वस्तु उसे मैंहंगे दामों--नोर बाजार के হালা पर खरोदनों पड़ी हैं । भारतीय किसान आत्म-निर्भर नहीं हैं, इसलिए बह मेंहगी का भी पूरा-पूरा लाभ नहीं उठा सकता । कृपि-ऋण को स्मन्‍्या लगमग ज्यों की त्यों ही बनी रही । भारतीय किसान की निर्धनता के अनेक वारस्ण हैं; जैसे एक मात्र भृमि पर ही जीविका के लिए निर्भर रहना, भूम या छोटे छोटे अनुत्यादक टुक्‍्ड्रो में बट जाना, भूमि से पैदाब/र का कम होना, भास और अन्य भोतों से कम সায় বা होना, इत्यादि इत्यादि 1 श्रायश्यक्षता इस बात को है कि किसानों को उचित ब्याज पर ऋण दिए जाएँ | सह्यारी समितिया बी संस्या बढनी चाहिए और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उिसानो वो अल्प- बाल ते लिट लगभने ६ ग्रदिशत ब्याज पर ऋण मिल जाया करें। আজ क्रिसानो को ০ বদ ই লিহ 4১21208]712] 21০52850০20: ध०४ से ३३६ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋर मिलता है। हमारे देश में भी इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए । १६४६ में गाइगिल कमेटी ने सुभाष दिया था कि प्रयेक प्रान्त में एक ऐसी सेस्था स्थापित होनो चाहिए जो किसानो को थोड़े ब्याज पर ऋण दिया करे। क्रिसान अपनी बस्तुश्रों झे उचित दाम भी प्राप्त नहों कर पाते | वे ऐसे समय में अपनी फसल वेचते हैं जबक्ि कीमतें बहुत गिरी हुईं शेवी हैं । उपभोक्ता जब एक रुपये का माल सरीदता है तो किसान को ८) आने मिलते हैं | बाकी मीच वे दलान खा ज्यते हैं। क्सान अपने श्रक्ष को मरिडयों में नहीं ले जा सफते क्योकि उन्हें वहाँ के दिन प्रति दिन के भाव मालूम नही रहते । यातायात के साधन भी नहीं है । इस सम्बन्ध में उचित मुधार होने चाहिएँ ! माप और तौल निश्चित हो जानी चाहिए। यातायात के साधनों में उन्नति होनी चाहिए | पक्को खत्तियों का प्रबन्ध होना चाहिए । सहकारी समितियों की स्थापना होनी चाहिए जिनके द्वारा किसानों को अपना माल बेचने में सहायता मिले । कृषि की दशा सुधारने में पशुधन की उन्नति भी श्रावश्यक है। इसमारें देश में पशु बहुत निबंल हैं और कृपि में काम आने दाले औजार मो प्रायः घुराने हैं। बैशों के निबबल होने से खेदो की बुवाई गहरी नहीं हो पाती।




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