मेरे गुरुजन | Mere Gurujan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वामी रामतीथ सस्करण स्वामी सत्यदेव ने अपनों सत्य-प्रत्थ-साला सम मुजू फ़्फ़पुर से प्रकाशित किया था । ओर तोसरा सस्करणु मेंने स्वयं सिर प्रकाशित किया । राम बादशाह के छः हुक्मनामे के लाम से एक पुस्तक कलकत्ते की हिन्दी पुम्तक एजेन्सी ने भी प्रकाशित की थी । इन सबके बाद लखनऊ से रामती्थ पब्ज्नीकेशन लीग की थोर से स्वामी रामतोर्थ के समस्त लेख व्याख्यान मौर पत्र आदि १० 06. छा ०05 0 ०ते-6815201077 के नाम से प्रकाशित हुये हैं । इस वृददतू संग्रह का प्रकाशन नारायण र्दासी के प्रयल्लो का फन्न है.। उनका यद्द काम उनको कोर्ति को बनाये रखने के लिये पर्याप्त है । सेरे अगरेजी संग्रह के प्रकाशित होने पर सेए पत्र व्यवहार स्वामी रामतीथ के कई भक्तो से हुआ । इनमें सबसे पहले हैं श्री शरुना जी थौर काका कालेलकर जिन्होंने मराठी से स्वामोज्नी के लेखो का अनुवाद करके प्रकाशित किया था | मेंने भो इस मराठी अनुवाद में पत्र व्यवहार द्वारा स्वामीजों के लेखों का स्पष्टोकरण करने में उपयुक्त सज्नों को सद्दायता दी थी जिसको खन्दोने झपनो मराठो पुस्तक को भूमिका में लिख भो दिया है । स्वामोजी के संग्रह की बदौलत सेरे पास स्वामोजी के झमरी- कन भक्तो के पत्र भी आये तथा दो-तीन सज्वों ने स्वामी जी के झमरीका म लिये हुये चित्र भी भेजे थे। इन चित्रों में स्वामीजी का एक चित्र हैं जिसमे वह पादरियों का-सा गाउन पहने हैं और साफ़ा बॉधे हैं। इसके पढले मैंने स्वामोजी का कंबल एक ही चित्र देखा था जिसमें वह ने बदन केवल एक पीछा पहने हुए चेठे है स्वामोजी अंगरेज्ी उदू झर हिन्दी तीनो हो भाषाओं में चड़े प्रवादद के साथ जिखते आर बाज्ते थे । वे तोनो हो जबाना




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