श्री भागवत दर्शन भागवती कथा | Shri Bhagwat Darshan Bhagwati Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)€ ५१)
विस्तरा नी, अन्य सामान नहीं । उन दिनों रेल में तृतीय श्रेणी
के पश्चात् एक उयोढी श्रेणी होती थी। उसऊी वे स्वय दो ठिफ्टें
से आये और गाडी मे बैठ गये । प्रातः ३-४ बजे खुरना जर्शन
पर उतरे | कोई सवारी नहीं ! एक टूटा-सा इक्का था, उसी में
चैठ कर हम अपने बाजार के उसी गन्दे अटटे में पहुँचे । वहीं
भूमि पर हमने कपड़ा बिछा दिया उसी पर बे लेट गये ।
श्रातःकाल हमारा एक श्रत्यत गन्दा हाथ से सफाफरने
चाला शौचालय था उसी में वे चले गये। स्वयं स्नान क्रिया |
खद्र की मोटी धोती को स््रय धोया, अपने कसते में धोती में
জান্তন হর लगाया। मैंने बहुत कहा --“मैं धो दूँगा, उन्होने
इस वात को स्पीकार ही न किया । कुछ देर पश्चात् नगर के कुछ
लोग आ गये, उनसे बातें करते रहे | उन दिनों कपडे बेचने वाले
व्यापारियों से यह आग्रह किया जाता था, कि थे यिदेशी बस्रो
'पर सील भुहर लगवा कर रख दें। स्वदेशी कपडा बेचें। ये वस्र-
विक्रेताओं से यही आग्रह करते रहे। छुछ ने माना, कुछ ने टाज-
मदोल कर दी । किसी प्रकार के जलपान या चाय का हम प्रबन्ध
नहीं कर सके ।
दोपहर के समय हमारे नीचे एक जैनी सेठ रहते थे, उनके
यहाँ से हम दाल-रोटी साग मॉग लाये। प्रतीत होता था, तिना
छुरा काटा चम्मच के भोजन करने का उनका यह प्रथम ही
अयसर था । तब तक हमने न तो छुरी कॉटे देसे ही थे, न किसी
को छुरी काटों से साते देसा ही था। अब हम सबको छुरी
काटो ओर चम्मचों से साते देखते हैँ । नवीन दग के गोचानय
{ पलसवालो ) मे जाते देखते हैं, तब अमुभय करते हैं, उन्हे हमारे
इस ग्रामीण व्यत्रहार से क्रितनी असुन्िधा हुई होगी, किन्तु
न्दने किसी भी प्रकार यह प्रकठ नहीं होने दिया, कि हमें यहाँ
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