श्री भागवत दर्शन भागवती कथा | Shri Bhagwat Darshan Bhagwati Katha

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Shri Bhagwat Darshan Bhagwati Katha by श्री प्रभुद्त्तजी ब्रह्मचारी - Shri Prabhudattji Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ५१) विस्तरा नी, अन्य सामान नहीं । उन दिनों रेल में तृतीय श्रेणी के पश्चात्‌ एक उयोढी श्रेणी होती थी। उसऊी वे स्वय दो ठिफ्टें से आये और गाडी मे बैठ गये । प्रातः ३-४ बजे खुरना जर्शन पर उतरे | कोई सवारी नहीं ! एक टूटा-सा इक्का था, उसी में चैठ कर हम अपने बाजार के उसी गन्दे अटटे में पहुँचे । वहीं भूमि पर हमने कपड़ा बिछा दिया उसी पर बे लेट गये । श्रातःकाल हमारा एक श्रत्यत गन्दा हाथ से सफाफरने चाला शौचालय था उसी में वे चले गये। स्वयं स्नान क्रिया | खद्र की मोटी धोती को स््रय धोया, अपने कसते में धोती में জান্তন হর लगाया। मैंने बहुत कहा --“मैं धो दूँगा, उन्होने इस वात को स्पीकार ही न किया । कुछ देर पश्चात्‌ नगर के कुछ लोग आ गये, उनसे बातें करते रहे | उन दिनों कपडे बेचने वाले व्यापारियों से यह आग्रह किया जाता था, कि थे यिदेशी बस्रो 'पर सील भुहर लगवा कर रख दें। स्वदेशी कपडा बेचें। ये वस्र- विक्रेताओं से यही आग्रह करते रहे। छुछ ने माना, कुछ ने टाज- मदोल कर दी । किसी प्रकार के जलपान या चाय का हम प्रबन्ध नहीं कर सके । दोपहर के समय हमारे नीचे एक जैनी सेठ रहते थे, उनके यहाँ से हम दाल-रोटी साग मॉग लाये। प्रतीत होता था, तिना छुरा काटा चम्मच के भोजन करने का उनका यह प्रथम ही अयसर था । तब तक हमने न तो छुरी कॉटे देसे ही थे, न किसी को छुरी काटों से साते देसा ही था। अब हम सबको छुरी काटो ओर चम्मचों से साते देखते हैँ । नवीन दग के गोचानय { पलसवालो ) मे जाते देखते हैं, तब अमुभय करते हैं, उन्हे हमारे इस ग्रामीण व्यत्रहार से क्रितनी असुन्िधा हुई होगी, किन्तु न्दने किसी भी प्रकार यह प्रकठ नहीं होने दिया, कि हमें यहाँ




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