भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य | Bhavisytt Kaha Tatha Apbhransh Kathakavya

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Bhavisytt Kaha Tatha Apbhransh Kathakavya by देवेन्द्रकुमार शास्त्री - Devendrakumar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ बषष्ठ अध्याय लोक-तत्त्व ३६१-४१२ लोककथा के रचना-तत्व,_लोक-मानस, लोक-ग्राथा कहें या लोकाख्यान, भविष्यदत्तकथा का लोकरूप, विलासबतीकथा का लोकरूप, विकासवती और पुहुपावती . कथागत साम्य, श्रीपालकथा का लछोक-रूप, कथा-मानक-रूप-भ० क० के कथामानकरूप, सि० क० या श्रीपालकथा के कथा-मानकरूप, जि० क० के कथा-मानकरूप, वि० क० के कथा-मानकरूप, अन्य कथा-मानकरूप, कथाभिप्राय-कथा के मूल अभिप्राय, अभिप्रायों का अध्ययन, निष्कर्ष, अभि- प्रायो का वर्गकरण-पशु सम्बन्धी, जादू, चमत्कारी, मनुष्यभक्षी राक्षस, परीक्षाएं, बृद्धिमान्‌ और मूर्ख, धोखे, भाग्य का पलटना, भविष्य-निर्देशन, अवसर तथा भाग्य, पुरस्कार तथा दण्ड, कर्म का फल, धार्मिक विश्वास, सामाजिक लोक-जोवन ओर संस्कृति-धामिक विवास, शकुन-अपशकुन, ज्योतिषियों की भविष्य-वाणी, दूरस्थ देश में कौआ उड़ा कर सन्देश भेजना, जाति सम्बन्धी, सामाजिक आचार-विचार, लोक-निरुक्ति । सप्तम अध्याय परम्परा और प्रभाव ४१३-४३६ संस्कत काव्यो का प्रभाव--आत्म-विनय-प्रद्ंन, नगर-वर्णन, वननवर्णन, अपभ्रंश-कथाकाव्यों मे वर्णन-साम्य, भविष्यदत्तकथा का अपश्र श की परवर्ती रचनाओ पर प्रभाव, अपभ्र श-कथाकाव्यों का हिन्दी-साहित्य पर प्रभाव, धनपाल की भ० क० और जायसी का पदमावत, अपभ्रंश तथा हिन्दी के अन्य कान्य ॥ सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची ४३७-४४६ शब्दानुक्रमणिका ४४७-४७४




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