जीवन्धर | Jivandhar

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Jivandhar  by श्री अजित जी - Shri Ajit Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) नगर में सभी वस्तुओं के क्रय-विक्रय की बड़ी-बड़ी दुकानें थीं, जिन पर सब प्रकार का माल सदा आता जाता रहता था, बाहर से आये हुए खरीदने-बेचने वाले व्यापारियों को भीड़ कभी भी इस नगर में कम न होने पाती थी । नगर के चारों ओर बहुत ऊँचा और सफेद रंग के पत्थर का कोट बना हुआ था। उस्त कोट में चारों दिशाओं में विशाल उन्नत द्वार ये, उन द्वारों पर रात दिन राजसेनिकों का फ्रा बना रहता था । नगर के बाहर दूर तक फैले हुए अनेक मनोहर उद्यान थे. जिन में सब तरह के फल-फूलों के वृत्त बड़े करीने के साथ लगे हुए थे। उद्यानों की सीमा समाप्त होते ही विविध धाल्यों के हरे-भरे खेत आने जाने वालों का चित्त मोहित करते रहते थे । राजगृह की जनता बहुत प्रसन्न और सदाचार-परायण थी, वहां पर कोई भिखारी और पापरत नहीं दिखाई देता था। अन्याय अत्याचार तो मानो वहां से कूच ही कर गये थे । राजा बिम्बसार प्रजा की सुख-सुविधा का सदा ख्याल रखता था ओर प्रजा भी राज-आज्ञा का ठीक पालन करती थी । राजगृह के शासक बिम्बसार के राजभवन में अनेक रानियां थीं उन सब रानियों में चेलना रानी सबसे अधिक सुन्दरी और चतुर थी, वह वैशाली के राजा चेटक की सुपुत्री थी शतण्व घर्म-आचरण-परायण आदश महिला थी । चेलना रानी की प्रेरणा पाकर राजा बिम्बसार ( भ्रशिक ) भगवान्‌ महावीर का पधान




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