मेरा जीवन संघर्ष | Mera Jivan Sangharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
337
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रञ्जन तथा विद्यालय ११
मेरी दादी तथा उनकी लड़कियों को ही करनी पड़ती थी । लालाजी को अपने पिता की
समस्त उदारता विरासत के रूप में मिली थी। वह ग्रतिथियों को दादी, भाभीजी,
के पास भेज देते थे, जिन्हें किसी न किसी तरह उनका प्रबन्ध करना ही
पड़ता था। एक दिन बाबाजी ने महीने के बीच में, जब घर की समस्त खाद्य-सामग्री
लगभग समाप्त हो चुकी थी एक पड़ोसी को उनके पास भेज दिया। भाभी जी
जानती थीं कि महीने के अ्रन्त तक उन्हें सामान चलाना है और एक-एक दाना
बचा कर ही ऐसा करना सम्भव था उन्होने उस पड़ोसी से श्रपनी स्थिति को
स्पष्ट करते हुए समभा दिया कि वे कुछ नहीं दे सकतीं । लेकिन जब लालाजी को
इसका पता चला तो वह बहुत बिगड़े और बोले मेरा घर हमेशा भरा-प्रा रहा है ।
इस तरहु जब भी घर में किसी वस्तु का अभाव होता था तो परिवार की स्त्रियों
को ही भूखा रहना पड़ता था ।
परिवार के सात बच्चों में से छः लड़के थे तथा लाला जी ने इस बात का
निईचय कर लिया था कि उनमें से हर एक को विश्वविद्यालय तक शिक्षा मिले।
वास्तव में गाँव में रहने वाले एक सीमित साधनों वाले व्यक्ति के लिए, जहाँ ८५
प्रतिशत जनता अशिक्षित हो, यह बड़ी ही ऊँची गआ्राकांक्षा थी । जब बच्चे स्कूल
जाने लायक हुए तो उन्होंने गाँव से दो मील दूर स्थित एक सरकारी सकल में पढ़ाना
आरम्भ कर दिया। रोज सुबह श्रपना घर का काम-काज समाप्त करने पर उन्हे
यह फासला पदल चलकर तय करना पडता था । वापस आती बार पेड़ के नीचे
बठकर वे स्कूल में दिया गया घर का काम खत्म कर लेते थे ।
लालाजी उनके साथ हमेशा बच्चों के समान नहीं, बल्कि वयस्कों के समान
व्यवहार करते थे श्र नो वर्ष की भ्रवस्था होने पर मेरे पिता जी को छोटे भाइयों की
देखभाल का काम सुपुर्दे कर दिया गया था, जिससे कि वह भाइयों के सम्मुख ग्रच्छा
उदाहरण रख सरके। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में उन्होंने लाहौर के गवर्नमेण्ट कालेज में
चिकित्सा विज्ञान की पहली कक्षा में प्रवेश किया । इंटरमीडियेट पास करने के बाद
उन्होंने लाहौर के किग एडवर्ड मेडिकल कालेज में द।खला ले लिया । जहाँ उन्होंने
शिक्षा तथा खेल-क्द--दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त प्रगति तथा श्रेष्ठता का परिचय दिया।
दोनों गुणों का एक व्यक्ति में मिलना सचमुच बहुत कम होता है।
मेरे पिता जी बड़े महत्वाकांक्षी तथा स्वतन्त्र विचारो के व्यक्ति थे । अ्रप्रल
१९१६ में जब गांधी जी को अंग्रेजी सरकार हारा लगाया प्रतिबन्ध तोड़ कर
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