श्री चन्द्रप्रभपुराण भाषा | Shri Chandrapuran Bhasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
434
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५) अत सधि
पा
कथा लक्षण ।
छंद पाइता चारू-अक्षेषणी कथासुजानं, विक्षेप्णी शरहुरि
युपाने | संवेशणी तीजी सोहै, निर्वेदनी तये सु मोहें ॥२९॥
सुन अथे सु इन ए भातं, थापे हेतु दिश्टंत। धुन स्पादवादमें
जोहै, अक्षपणी कथा जु सोहै ॥ ३० ॥ নিসাব হিয়া আছ
जामैं, पूरवापर विरुद्ध सु तामैं। ताको उत्थाह्नन कर है, विक्षपणी
सो मन इरहै ॥ ३१ ॥ तीर्थकर आदि महानां, पुराण पुक्
व्यारुपानां । वृष २ फूल .वरनन जामे, सवेग नीती जो नामे
॥ ३२॥ संसारमोग थित लक्षण, कारण बेराग ततश्षण ।
निर्वेद चतुर्थ नि येही, ए लक्षण कथा वरेहो ॥ ३३ ॥
সত মহিমা । |
छप्प-मिथ्या कुंजर तिह मोह पादप टार कर, भाक
सापकों इदु ঘা अज्ञान दित्राङर । कोष नागक्तो मंत्र মান
गिरको वज्जोपम, माया सफरी जाल लोभ घनको सुपोन सम ।
आगल समान है कुगतको, स्रगे म्क्तिको श्रणिवर | शुभ ऐसो
अथ महान यह, पढ़त सुनत आनंद घर ॥ ३४॥
कवि लघुता ।
मडिल-चद् गहै जू बाल रु पकडे नागक्रो, चुटुगत साभर
चार फे सेर्याजको ।नगये चट जुमु बन एर. वोदटै,
ाडतनौ स्यौ प्रदी माषा जोददै ॥ ३५॥
चोपई-सज्जन हांसी करो न मोह, सोघो भ्रूलू जहां कक
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