आचार्य श्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ | Aacharya Sri Tulsi Abhinandan Granth

Book Image : आचार्य श्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ  - Aacharya Sri Tulsi Abhinandan Granth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रबन्ध सम्पादक की ओर से सामान्यतः आज का युग व्यक्ति-पूजा का नहीं रहा है, पर आदर्शों की पूजा के लिए भी हमें व्यक्ति को ही खोजना पड़ता है। अहिसा, सत्य वे संयम की अर्चा के लिए अणुब्नत-आनन्‍्दोलन-प्रवर्तक ग्ाचार्य थी तुलसी यथार्थ प्रतीक है । वेग्रणुत्रतों की शिक्षा देते है और महाब्रतों पर स्वयं चलते है । भारतीय जन-मानस का यह सहज स्वभाव रहा है कि वह तक से भी अधिक श्रद्धा को स्थान देता है। बह श्रद्धा होती है--त्याग और संयम के प्रति । लोक-मानस साधुजनों की बात को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, जितनी श्रद्धा से ग्रहण करता है, उतनी अन्य की नही । अ्रणुब्रत-श्रान्दोलन की यह विशेषता है कि वह साथुजनों द्वारा प्रेरित है। यही कारण है कि वह आसानी से जन-जन के मानस को छू रहा है। आचार्य श्री तुलसी समग्र आन्दोलन के प्रेरणा-स्रोत है । आचायंश्री का व्यक्तित्व सर्वागीण है। वे स्वयं परिपूर्ण हैं और उनका दक्ष गिप्य-समुदाय उनकी परिपूर्णता में ओऔर चार चाँद लगा देता है। योग्य शिप्य गुरु की अपनी महान्‌ उपलब्धि होते हैं। प्ररतुत अभिनन्दन ग्रन्थ व्यकितिअर्चा से भी बढ़ कर समुदाय-अर्चा का द्योतक है । अ्रणुत्रत-आन्‍्दोलन के माध्यम से जो सेवा आचार्यजी व मुनिजनों द्वारा देग को मिल रही है, वह झ्राज ही नहीं; युग-युग तक झ्भिनन्दनीय रहेगी । आचारयंश्री तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ” केवल प्रश्मस्ति ग्रन्थ ही नहीं, वास्तव में वह ज्ञान-वृद्धि और जीवन-शुद्धि का एक महान्‌ भास्‍्त्र जैसा है। इसमें कथावस्तु के रूप में आचार्यश्री तुलसी का जीवनवृत्त है। महाव्रतों की साधना और मुनि जीवन की आराधना का वह एक सजीव चित्र है। राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कबि बन जाय सहज सम्भाव्य है की उक्लि को चरितार्थ करने वाला वह अपने झ्राप में है ही | साहित्य मर्मज्ञ मुनिश्री बुद्धमतलजी की लेखनी से लिखा जाकर वह इतिहास और काव्य की युगपत्‌ अनुभूति देने वाला बन गया है। नंतिक प्रेरणा पाने के लिए व न॑तिकता के स्वरूप को सर्वागीण रूप से समभने के लिए अपृक्रत अध्याय” एक स्वतन्त्र पुस्तक जेंसा हैं। दर्शन व परम्परा अध्याय में भारतीय दर्शन के अंचल में जैन-दर्शन के तात्त्विक और सात्त्विक स्वरूप को भली-भाँति देखा जा सकता है। “श्रद्धा, संस्मरण व क्तित्व' अध्याय में आचार्यश्री तुलसी के सार्वजनीन व्यक्तित्व का व उनके क्ृतित्व का समग्र दर्शन होता है। साधारणतया हरेक व्यक्ति का अपना एक क्षेत्र होता है और उसे उस ल्षेत्र से श्रद्धा के सुमन मिलते हैं । नैतिकता के उन्‍नायक होने के कारण आचार्यजी का व्यक्तित्व सर्वक्षेत्रीय वन गया है और वह इस अध्याय से निबिवाद ग्रभिव्यक्त होता हैं। केवल छः मास की अवधि में यह ग्रन्थ संकलित, सम्पादित और प्रकाशित हो जाएगा, यह आद्या नहीं थी। किन्नु इस कार्य की पवित्रता और मंगलमयता ने असम्भव को सम्भव बना डाला है। ऐसे ग्रन्थ अनेकानेक लोगों के सक्रिय योग से ही सम्पन्न हुआ करते हैं। में उन समस्त लेखकों के प्रति आभार प्रदर्शन करता हूँ, जिन्होंने हमारे अनुरोध पर यथासमय लेख लिख कर दिये। राष्ट्रपति डा० राजेन्द्रप्रसाद, प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, उपराष्ट्रपति डा० एस> राधाक्ृप्णनू, स्वदियी संत विनोवा व राजपि पुरपोन्षमदास टण्डन आदि ने अपनी व्यस्तता में भी यथासमय अपने सन्देश भ्ज कर हमें बहुत ही अनुगृदीत किया है। तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ के व्यवस्थापक श्री मोहनलालजी कठौतिया का व्यवस्था-कौश्वल भी अभिननन्‍्दन ग्रन्थ की सम्पन्तता का अभिन्‍न अंग है । दिल्ली ्रणुत्रत समिति कै उपमन्तरी श्री मोहनलालजी वाफणा और श्री लादुलालजी आच्छा, एम ० कॉम० मेरे परम सहयोगी रहे हैं। इनकी कार्यनिष्ठा ग्रन्ध- सम्पन्नता की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। श्री सुन्दरलाल भवेरी, वी० एस-सी० ने आ्राचार्यश्वी तुलसी के सम्पर्क में आये हुए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now