कथा कुसुमनज्जलि का सरल अध्ययन | Katha-Kusumajjali Ka Saral Adhyyan

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Katha-Kusumajjali Ka Saral Adhyyan by बद्रीनारायण शर्मा - Badrinarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) चरित्र चित्रण किया गया हैं वह वेजोड़ है। हिन्दी कहानी साहित्य में श्ाज भी जब कि कहानी साहित्य दिनों दिन उन्नति कर रहा है ऐसे मासिक चरित्र चित्रणों के उदाहरण मिलना सम्भव नहीं कहानी का प्रमुख पात्र लहनारसिह है । सुवेदारनी दूसरा सनल चरित्र है । इन दो पात्रों--लहनासिंह एवं सुवेदारतजी के अतिरिक्त सूवेदार हजारासिह, बोबा्िह, वंजीरासिह एवं लपटन साहव हैं। इस प्रकार विशेष ध्यात देने योग्य जो बात इस कहानी में है वह यह है कि इस कहानी में पात्रों की अल्पता है। पात्रों की अल्पता कहानी का एक विशिष्ट गुण है। श्रधिक पात्रों के होने से कहानी में दुरूहता था जाती है गलेरी जी यह बात भली भांति जानते थे इसलिए उन्होंने इस कहानी मे पात्रों की संख्या बहत ही सीमित रखी है । लहनासिह इस कहानी का केन्द्र बिन्द्र है और कहानी का नायक है । लहनासिह के चरित्र क्रे दो खप हमारे सामने आते हैं। पहला रूप प्र मी लहनासिह का है श्लौर दूसरा कप कत्त व्य परायण, वीर एवं साहसी लहनासिंह का है। इन दोनों रूपों का कहानीकार ने मर्मस्पर्णी एवं प्रभावणाली वर्णान किया है । लह॒ना- सिह निःस्वार्थी, वीर एवं लोके कल्याशकारी भावनाश्रौ से पशं है! उसमें त्याग और वलिदान है । उसके हृदय का प्रेम कत्त व्य परायणता में परिवर्तित हुआ है। सवेदारनी नें अपने पति एवं पुत्र की रक्षा का भार उस पर छोड़ दिया । लह- नासिह्‌ ने श्रपना उत्तरदायित्व अपने प्राणों की वाजी लगाकर पूरा किया। यदि युद्ध भूमि स वहु घायल सुवेदार हजारासिंह एवं रुग्ण वोधसिह को नहीं भेजता' और स्वयं श्रा जाता तो वह जीवित बच्र जाता किन्तु वहुत सम्भव था कि उन दोनों बाप बेटों में से कोई एक काल का ग्रास बन जाता। यदि ऐसा हो जाता तो उस प्रेम श्लौर विश्वास का क्या परिणाम होता जो सूवेदारनी लहनातसिह के प्रति रखती थी | लह॒नासिंह अपना कत्त व्य खुब समझता है इसीलिए उसने अपने प्राण गँवा कर सूवेदारनी कं पति हजारासिह एवं पुत्र वोचर्सिह के प्राणों की रक्षा करना पहला कत्तंव्य समफ्ता और इसी कत्त व्य पालन में श्रपनें जीवन क श्रन्त' 'कर दिया। सूवेदारनी को एवं उसके सुख को वह अपने प्राणों से भी भ्रधिक प्रेम * करता था इसलिए उसने उत्सर्ग का यह उदाहरण हमारे सामने उपस्थित किया। लहनासिंह ने लपटन साहव के छल को समक कर उनकी जो श्रावभगत की वह उसकी तुरन्त बुद्धि एवं साहस का परिचायक है। लहनासिह का निश्ञाना भी श्रचूक है वह्‌ श्रच्छा योद्धा, सच्चा प्रेमी एवं कत्त व्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में हमारे




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