छायावादी काव्य में उदात्त तत्त्व | Chayavadi Kavya Mein Udatt Tate

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Chayavadi Kavya Mein Udatt Tate by कमलेश - Kamlesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय पठद्टा चका रूजकूप्न उदात्त अप्रेमी शब्द (5ण्णा९) 'सन्लाइम' का हिन्दी सूपान्तरण है । पाश्वारेय साहित्य मे सौन्दर्येशास्त्र क साय इस शब्दावली पर भी दीघे- कालीन परम्परा से विंचार होता आया है ! इस तत्त्व का सर्वप्रथम विचारक लाजायनस है. जिसने 'पेरिइप्सुस' ग्रन्य काव्य के उदात्त-तत्त्व के लिए लिखा था। इसके अनुसार उदात्त तत्त्व शैली का महृत्तम गुण है जो विभिन्‍न व्यंजनाओं के माध्यम से किसी व्यवितत्व या घटना के रोमांसिक, आवेशपूर्ण एवं भयंकर तत्व को प्रकट करने के लिए श्रयुकत होता है। लांजायनस के अनुसार 'साहित्य का अस्तित्व शिक्षा देने के लिए अथवा ज्ञान देने के लिए नही है प्रत्युत वह तो हमारे संवेगों को जाग्रत करने, हमे हर्पातिरेक का अनुमव कराने और हमें आनन्द प्रदान करने के लिए है। वह महान्‌ और गम्भीर विचारों की जावश्यकता को भली प्रकार स्वीकार करता है । मगर उसका विश्वास है कि उदात्त विचार गहन संवेगो का उद्रंक करते है श्रीदात्म तक पहुँचा देते है ठीक उसी प्रकार जसे इसके विपरीत एक गहन स्ेग एक भूक्ष्म विचार कौ जन्म दे ।' सर्वेश्रवम लाजायनस ने उदात्त विषयक विचारों को ৭, 16057, 0201 0০৮০1 & 1001180২০৮০: 474 60 111612 (पायया, ए. 72 প020111506016 52150551000 00 16805 ता 10 ण्ट ए5 15200108, एण 00 810855 9৮. 5100110105, 10 020515011 ४5 [9 5051859, 10 85৩ 5 01525010- ৩ 80015 03125059516 01 हाव হা 51815 पणणं, एण एलाह पद पठण 10555 8156101361০ ৫০৫ €7700005, 1105 25. ৮0 58079, णडा 26, त्नः 2060 80000015093 08৮৩ 1156 00 07010010010.




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