हंसराज की डायरी | Hansraj Ki Diary

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Hansraj Ki Diary by गोपालराम गहमरी - Gopalram Gahmari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हंसराज की डायरी ७ में--यहीं पासवाले छुत्तीस नम्बर के मकान में कल तीसरे पहर को। छम्मी मियाँ के घर की तलाशी हुई है । डा०--झरे उसको ता दम जानते हैं ! हमारे पास दवा लेने बद्द बहुत आया करता है। लिखा है तलाशी किस वास्ते हुई है १ मैं--केाकेन के वास्ते हुई है। देखिए न पढ़ लीजिए डाक्टर ने फिर चश्मा नाक पर चढ़ाकर हाथ बढ़ाया । मैंने तुरत 'बम्बई-समाचार' दे दिया। वे आँख के पास ले जाकर पढ़ने लगे-- “कल कुम्दारबाड़ा के छत्तीस नम्बर 2 मकान में शेख छुम्मी मियाँ के मकान में पुलीस ने घंटों तलाशी की है । उस घर में छम्मी नाम का एक शेख रहता था। लेकिन कोई फैसानेवाली चीज़ बरा- मद नददीं हुई है। तो भी पुलिस को यह विश्वास है कि इस मदल्ले में कोकेन की कोई गुप्त आढ़त है, जहाँ से शहर में सर्वत्र कोकेन सप्लाई किया जाता दै। कोई पक्के हाथ का चतुर असामी पुलीस की झाँख में धूल भोंककर बहुत दिनों से यह गैरकानूनी काम कर रद्दा है। यह बड़े दुःख की बात हे कि श्राज तक श्पराघी-- अपराधियों या उनके नेता--का पुलीस पता नहीं लगा सकी, न उनके गुप्त भारडार का दी कुछ ठिकाना मालूम हो सका ।” डाक्टर कु चिन्ता करके कदने लगे--“बात विलकुल सही है। हम भी इतना ज़रूर समझ रहे हैं कि अगल-बग्रल में केकेन का कोई बढ़ा श्वड्डा ज़रूर दै, इसका मुके कई बार इशारा मिला दे । श्राप तो जानते दी हैं, हर तरदद के लोग हमारे यहाँ दवा लेने श्राया




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