भारतीय द्वीप | Bharatiya Dweep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साड्टी के होप / 17 £ নস এ लोग रहते थे। इन प्रारंभिक कृत्तियो में विभिन्‍न यात्रियों द्वारा जो उत्तेश मिलते ह सब सुनी-सुनाई बातों पर आधारित हैं । प्रारंभिक समय से ही मलय समुद्री গুলী एन द्वीवों का विध्वंस किया । इन समुद्री टाझुओं ने अपने बढ़ा-चद्रादार किए गए से इन हीपों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया जिसके परिणामस्थरूप लोग परे संत्रास का स्थान मानने लगे । संभवत: द्वीपसमृह का अंटमान नाम 'हनुमान या उनसे दानर लोगों का बिद्गत रूप है जो कि भारत में आये आप्रवानियों दे आदिवासी प्रतिद्वंद्वी थे प्रारंभिक ॥ি पौराणिक कथा रामायण में इन हीपी को हनुमान की भूमि माना गया है। सलय হালা उन्हें हनुमान कहा करते थे जो कि हनुमान वा ही विद्धत रूप है। मलय से ही सर्यप्रथम अंटमान मे बारे में विदव के विभिन्‍न भागों में प्रचार हुआ । भंटमान के एतिहास के वास्तविक अभिलेस वर्ष 17177 से प्राप्त है झददि प्रिर सरपार ने द्वीप में दांटिक बरती बनाने की कारंबाई प्रारभ मपी ददम नट फार्मवालिस ने सनू 1788 में ले० ब्लेयर को इसको संभायनाक्षों के अध्ययन फे लिए भेजा। तदमुसार पोर्ट फानंवालिस (अब पोर्टब्लेयर) भे चेतहाम हीपसम्ह पर पाली सती स्थापित की गई थी । सन 1857 में सिपाही पिद्रोश यथा भारतीय स्यतंदता दे प्रभम युद्ध मे स्िटिए्त सरकार को मार्च, 1857 में इस दीप की टांडिद इस्सी में पर्यितित परने के लिए मजबूर कर दिया। एस प्रगार अंडमान की इसवे इतिहास के घूसरे चरण से एक दांडिक दस्सी दसा दिया गया और यहां मदियों का प्रथम दल भेजा गया। याद में द्वितीय पिश्ययद्ध ने अंटमान कये एइससा गले में दाल दिया वि माणन य না भी जन्य भाग युद्ध से एतना प्रभावित नदी टला जितना कि অতলান পাল । 21 भा, 1942 को जापानी सेना ने यहां पदा्पण ठिया सौर यह ীনলাতুত व्यं 194: तप जापानी शापिपत्य में रहा । 15 अगरत, 1947 से बंंटमान और निरनेबार द्वीएइसगुटों मे भारत के माप ग्पतदता प्राप्त मो । गत मान भें ये संप যান শা টে হেট মুদি অনা दिर सति भतो झसाया जा रहा है लौर एनका सम दिदास शिया তা र~ শখ পা हे এ এ 4- ~ জলা =




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