नदी बहती थी | Nadi Bahti Thi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मगर, पैदल ही दफ्तर जाना पड़ेगा । सिर्फ तरह नम्बर की बसें ही नहीं, शहर
में कहीं कोई ट्राम-बस, या टैक्सी नहीं चल रही है । हड़तालियों ने रास्तों पर
पेड़ काटकर भिरा दिये हैं। राजभवन के सामने और मुख्य मन्त्री कौ कोठी
के सामने कई बार भीड़ पर गोलियाँ चली हैं। लाठी-चार्ज का तो कोई
हिसाब ही नहीं ।
कल शाम क्रो विमल बाबू दफ्तर से लौट रहे थे। डलहौजी से पैदल एस्प्लेनेड
आते हैं। काफीहाउस में रनजीत बाबू और मिसेज सविता राय चौधुरी के
साथ घंटे भर बैठते हैं। यह नित्य का नियम है ।मगर, कल नियम टूट गया ।
राजभवन के सामने राइफलवन्दं भिलिटरी पुलिस के करई दस्ते मोर्चाचन्दी
किये थे और सामने हजारों-हजार हड़ताली थे। पोर्ट के कुली-मजदूर,
कल-का रखानों के कर्मचारी, युनिवर्सिटी के छात्र और छात्राएँ, रिफ्यूजी
कम्पो के मदे, वच्चे, ओरतें, ओौर लाल झ्षंडेवाली राजनीतिक पाश्यों के
कार्यकर्ता '**
सभी कुछ बड़े नाटकीय ढंग से हो रहा था। बीस-पचीस लोगों के' एक जस्थे
को फूल-मालाएँ पहनायी जातीं। जत्था आगे बढ़ता, पुलिस की सीमा-रेखा
को पार करने की कोशिश करता । पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती, और
अपनी गाड़ियों में वैंडाकर चली जाती । फिर,.दूसरा जत्या। फिर, तीसरा
जत्था । फिर, चौथा |
विमल बाबू को मज़ा आ रहा था। यह भी कोई आन्दोलन है ? दो-चार
नारे लगाये, मालाएं पहनीं, जेल चले गये । और यह आस्दोलन है क्यों ?
सरकार की खाय-पालिसी के चिलाफ़ ही तो ? इन पायो के प्रतिनिधि तो
विधान-सभा और लोक-सक्षा में हैं ही। वे बहीं अपनी आवाज़ क्यों नहीं
बुलन्द करते ह ? नाक गरीव गौर अनपढ़ी जनता को कष्ट देने, इतनी
धूप और वर्षा में, पुलिस की लाठियों और गोलियों में खड़ा करने की क्या
ज़रूरत है? विमल ठाकुर ऐसी ही बातें सोचते हैं। राजनीति का उन्हें कूछ
पता नहीं । भीड़ देखते हैं, और घबड़ा जाते हैं। जलूस में झण्डा लिए खड़ी
नदी बहती थी : १७
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