पाहुड दोहा | Pahuddoha

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Pahuddoha by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रंथ का नाम १३ नदी है | किन्तु मेरा ऐसा ध्यान द्वै कि अधिकांश ग्रंथ के दोषों का पाठ असंदिग्ध रूप से इस संस्करण में निश्चित द्वो गया है । जैसा कि आगे चछकर बतलाया जायगा, इस प्र॑य के अनेक दोहे परमात्मप्रकाश में व कुछ दोहे योगसार तथा द्वेमचन्द्र कृत प्रकत व्याकरण मे सञ्च मिरे है । किन्तु इन प्रथो के पाठभेद अकिंत ग नही किय गये । आवश्यकतानुसार उन पाठभेदों का टिप्पणी में उपयोग किया है । २, ग्रन्थ का नाम इस अ्थ के नाम के साथ जो दोहा शब्द लगा है वह उसके छंद का बोघक है | जैनियों ने पाहुड शब्द का प्रयोग किसी विशेष विषय के प्रतिपादक ग्रंथ के अथ में किया है। उन्दकुन्दाचाय के प्रायः सभी ग्रन्थ “ पाहुड” कहलाते है, यथा समयसारपाहुड, प्रवचनसारपाहुड,. भावपाहुड, . बोधपाहुड इत्यादि । गोम्मठसार जावकाण्ड कौ ३४१ बी गाथा में इस शब्द का अथं अविकार बतझाया गया है ‹ अहियासे पाहुडयं ' । उद ग्रंथ में आगे समस्त श्रतक्ञान को पाहद कदा है। इससे विदित होता है के धामिक सिद्धान्त-संम्रह को पाहृड कति ये । पाड का संस्कृत रूपान्तर प्राव्त किया जता हे जिसका अथ उपृद्कार है | इसके अनुसार हम वर्तमान प्रंयके नाम का अथ दोह्या का उपहार! ऐसा के सकते है|




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