वैरागी | Vairagi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैरागी রা এ श्र
दरवाजे की आड़ में खड़ा -. होकर धीरे से बोला-तिरे डर के मारे. हट
जाऊंगा यंदि मैं वहाँ जाऊँगा तो तू मेरा क्या विगाड़ लेगी !'
कुसुम ने कोई जबाव नहीं दिया । चिराग की बत्ती तेज कर `
वह् फिर सीने लगी । आड़ मे खड़े कज की हिम्मत फिर बद् गई ।
उसने अपनी झावाज कुछ और तेज करके कहा-'कृहते है, कृत्ते को
दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है । अपने: डायन-सी चिल्लायेगी. तो कोई
हर्ज नहीं और मैं तनिक जोर से बोल दूं तो... |
यह कह कर कंज रुक गया । परन्तु जब इसका भी प्रन्दर से
कुछ प्रतिवाद नहीं हुआ तो वह मन ही मन बहुत संतुष्ट हुआ ।
जाकर वह अपना हुक्का उठा लाया श्रौरश्रपने गले कीभ्रावाज `
कुछ तेज करके कहा-जब मैं बड़ा हूं, घर का मालिक हूं तो सब काम
मेरी मर्जी से होगा । |
यह् कह कर कज ते वह् जली हूरई चिलम उलट दी और
फिर से तम्बाकू चढ़ाते २ जोर से बोला-'किसी की बात सुनने की
मुझे जरूरत नहीं, मैं वार २ नहीं! नहीं सुन सकता । जब मैं घर का
भालिक हूं, जब धर-बार सब मेरा है तो मैं जो कहूंगा, वही***'
संहसा उसेने पीछे पैरों की आहट सुनी और जब घूम कर
देखा तो चुप रह गया ।
चुपचाप आकर कुसुम तेज निंगाह से उसकी ओर देखती
रही । उसने कहा-- बैठे-बैठे तुम कलह करोगे या जाओगे यहाँसे ?'
छोटी बहिन की इस तेज निभाह के सामने बड़े भाई के मालिक
बनने का सारा होसला जाता रहा । उसके मु ह से जल्दी कोई बात
ही नहीं निकली । कुसुम ने फिर उसी तरह कहा--' दादा, बताओरो,
यहां से जाओगे या नहीं ?'
अब नतो वह कुजनाथ रह गया था और न उसकी वह श्रावाज
भर्राई आवाज में उसने कहा-- हुक््का चढ़ाकर अभी जा रहा हूं ।'
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