श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण अयोध्याकांड | Shreemadwalmikiya Ramayan Ayodhya Kand

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Shreemadwalmikiya Ramayan Ayodhya Kand  by पंडित चंद्रशेखर शास्त्री - Pandit Chandrasekhar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीः ॥ श्रीमद्रास्मीकीयरामायणो छ्योध्याकार्डम्‌ ~ - ४४. ९ ५.४७ प्रथमः सर्मः १ गच्छता मातृलकुल॑ भरतेन तदानघः । शत्रप्नो नित्यशत्रप्नो नीतः प्रीतिपुरस्क्ृतः ॥ १ ॥ स तत्र न्यवसद्‌ श्रात्रा सह सत्कारसच्छृतः । मातु सेनाश्वपतिना पुत्रस्तदेन लालितः ॥ २॥ तत्रापि निवसन्तौ तौ तप्यमाणौ च कामतः । च्रातरौ स्मरतां वीरो द्धं दशरथं दृष्‌ ॥ ३॥ राजापि तौ महातेजाः सस्मार प्रोषितौ सतौ । उभा मरतशत्रघ्ौ महेनद्रवरुणोपमौ ॥ ४ ॥ सवे एव तु तस्ये्टाश्चलारः पुरूषपभाः । खशरीरादिनिषटेत्ाश्चत्वार इव बाहवः || ५॥ तेषामपि पहातेना रामो रतिकरः पितुः । स्वयंभूरिव भूतानां बभूव गुणवत्तरः ॥ ६ ॥ सहि दवरुदीणंस्य रावणस्य वधाथिमिः । अथितो-मायुपे लोके जहे विष्णुःसनातनः ॥ ७ ॥ पिताकी आज्ञासे भरत अपने मामाके घर जाने लगे, निष्पाप शत्नन्नको भी (लक्ष्मणके घ्योटे লাই) अपनेमें प्रेम दोनेके कारण साथ ले गये । जिस शज्नन्नने राग-ढेंष आदि नित्य शत्रओंकोी जीत लिया था ॥१॥ अमश्वपति ( अश्वोंके पति, केकय देशके घोड़े उत्तम घोड़ोंमें सममे जाते हैं, इस विशेषणसे मात्यम होता है कि भरतके मामा बहुत अधिक घोड़े रखते थे ) मामा युधाजितके उत्तम सत्कारोंसे सत्कृत होकर तथा उन्हींके द्वारा पुत्रल्नेहले लालित होकर भरत अपने भाई शत्रुन्नके साथ रहने लगे ॥ २ ॥ मामाके यहाँ रहते समय उन भाश्योंका किसी प्रकारका कष्ट नहीं होता था, उनकी सभी इच्छाएँ पूरी होती थीं, जब जो चाहते थे तब बह मिलता था, फिर भी वे बीर बुद्ध राजा दशरथकी याद्‌ करते थ ॥ ३॥ महा- तेजस्वी राजा दशरथ भी घरसे बार गये, इन्द्र और वरुणकी समता रखनेवाले भरत और शयुप्न अपने दोनों पुत्नोंक्ा स्मरण किया करते थे ॥ ४ । राजा दशरथके वे चारों पुरुषोत्तम, अपने शरीरसे निकली चार बाहु्ओंके समान प्रिय ये, इसी कारण राम लक्ष्मणके भयोध्यामें रहनेपर भी वे भरत श्युघ्रकी याद्‌ करते थे ॥ ५ ॥ पर उन चारोंमें महातेजस्वी राम पिताके त्यन्त प्रिय थे, वे प्राणियोमें ब्रह्माफे समान अत्यन्त गुणबान्‌ थे ॥ ६ ॥ बढ़े हुए रावणके वधकी इच्छा रखनेवाले देवताओंकी प्राथनासे खवयं सनातन




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