सन्त पलटू | Santa Paltoo
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन ७
जीव को किए हुए कर्मों का फल भोगने के लिए बार-बार चौरात्ती
के दु:ख सहने पड़ते है। वह चौरासी की आग में जलमे के लिए तैयार
हो जाता है, परन्तु झूठ और फ़रेब की बुरी आदत को छोड़ने के लिए
तैयार नहीं होता :
बनियाँ वानि न छोड़े पर्संघा मारे जाय ॥
पसा? मारे जाय पूर को मरम न जानी ।
निसु दिन तौलं घाटि खोयर यह परी पुरानी ॥
केतिक कटा पुकारि कहा नहि करं अनारी ।
लालच से भा पतित सहै नाना दुख भारी 1
यह् मन भा निरलज्ज खाज नहि करं अपानी |
जिन हरि पदा किया ताहि का मरम न जानी ॥
चौरासी फिरि आइ कं पलदू जूती वाय 1
वनियां वानि न छोड पर्संघा मारे जाय॥
(भाग १, कुंडली १९७)
इसके विपरीत सच्चा प्रमु-भक्त मन के पीछे लग कर झूठ, फरेव
तथा बेईमानी करने की अपेक्षा अपनो कामनाओं को काबू में करता
है, उन पर नियन्त्रण रखता है। उसका पूरा प्रयत्न मन को वश में
करने की ओर होता है । आप कहते है :
सौ चनिया जोमन को तौले ॥
मर्नाहि के भीत्तर वसौ बजार । मनहीं आपु खरीदनहार ॥
মনন मे लेन देन मनि दुकान ) मनहीं मे मन की गुजरान ॥
मनहीं मे लाद उलदे अनत न जाय 1 मनहि की पैदा मर्नाहि मे खाय ॥
मनहीं मे तराजू मनि मेँ सेर 1 पलदूदासं सव मनही कां फेर ॥
(भाग ३, शब्द ९४)
विचारणीय है कि पलटू साहिब के सेवक आपको संसार की জী
वस्तु देमे को तैयार ये षटन्तु एक सच्चे सन्त कौ तरह आपे र
षु वम रखता है तथा पूरा-पूरा तोलने का गुण নেন ঝা সমল न्ट
२. आदत ।
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