उप - संहार | Upsanhar

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Upsanhar by योगेश गुप्त - Yogesh Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उप-सेहार / € साथ ही पत्नी को पुकार उठा, “रमान्ओ | / रमा फिर कमरे में दीखी | पूछा, “क्या है ? चीनी कम हैं ? ” “नहीं । ठीक है ।*“ “और यह तुमने घोती क्यों नहीं पहन रखी ?” रमा ने पति की तरफ देखा, फिर हंस कर कहा, “शुकर है। श्राज तुमने मेरी तरफ देखा तो सही 1” “जो पूछ रहा हूं, उसका जवाब दो 1 “दूसरी वार चाय लाऊंगी तो घोती पहन कर आऊंगी ।” “क्या मतलब ? “मतलब यह कि जब एक घंटे बाद दूसरी चाय लोगे तब तक धोती किसी कदर सूख जाएगी और में पहन कर आपके सामने हाजिर हो जाऊंगी। जाऊं ? ” “बहुत मुहावरेदार भाषा बोलने लगी हो ? ' “लेखक की पत्नी हूं, खेल थोड़े ही है!” “तुम्हारे पास दूसरी घोती नहीं है ? “है वयों नहीं । ट्रंक भरा पड़ा है। पर कौन निकाले ? मैं बहुत आलसी हूं ना ।**'चलूं, स्टोव खाली जल रहा है ।” वह चली गई। सुधीर बहुत देर बठा प्तोचता रहा। पता नहीं बया- क्या। फिर अचानक जोर से हंस पड़ा । अखवार पढ़ने को मन नहीं किया। खबरें बाती भी क्या हैं ? कैसे एक नेता ने दूसरे नेता की टांग खींची श्र कंसे वह नेता गिरते-गिरते भी हमलावर को टंगड़ी मार गया। वह भी गिर गया “ सभी साले गिरे पड़े हैं श्रौर सब समभते हैं कि पर कम-से- कम अ्रपराध-समाचार तो पढ़ ही लेने चाहिए। उनमें मज़ा आता है। ৪, उसने फिर पुकारा, “रमा-5 পিল क्या है ? / रमा ने दूसरे कमरे से ही कहा । “यहां आओ 1 रमा आई तो घोती पहने थी । शायद गीली ही पहल आई। पर सुधीर के दिमाग में श्रव वह वात थी ही नहीं। उसने रमा के दोखते हू कहा, 'वंठो यहाँ आकर, तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं ।” 1 33




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