नंगा शहर | Nanga Shahar

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Nanga Shahar by भीमसेन त्यागी - Bhimsen Tyagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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তম মতা ঘাও मैंने उन आँखों में छलाँग लगा दी 1 धीरे-धीरे लड़की का चेहरा गायब होने लगा और उसकी जगह एक और चेहरा उभरने लगा। मेरी पत्नी का चेहरा ! ठीक ऐमे हो तो देखती है बवहू। इन लोगो के पास यही एक जोड़ी बाँखें हैं क्या ? लड़की का चेहरा तेजी से दूसरे चेहरे मे बदलता जा रहा है। यहाँ भो बह पीछा नहीं छोड़ेगी। कम्बख्त* बे ववया सोचने लगे ? ” लड़को मे सवाल का सर्प आगे सरका दिया। मं अपने में लोटा, “कुछ नहीं, जरा घर का खयाल था गया या 1! “धर्‌ १ मर ने फत उठाया, “तुम्हारा घर है २” “हाँ, है। और रहेगा।” मैंने फन कुचल दिया । लड़की मे मुझे ऐसे दैखा असे माज पदनौ वार देख रही हो । वह दिना कुछ कहे उठी और तेजी से चली गयी । मुझे लगा, जैसे वह मेरे ऊपर यूक गयी है । लड़की के चले जाने के वाद मुझे अपनी वेवकूफी पर अफसोस होने लगा। जामी बाते परर बना-वनाया खेल बिगाड़ दिया। दुनिया के काम ऐसे चलते हैं ? लेकिन नहीं चलते तो न चलें। कोई मुझे लेना चाहता है तो जो कुछ मैं हूँ, उसे ले। लें लिये जाने के लालच में में जो कुछ नही हूँ, वह दिख नहीं सकता । गलत शर्तों पर मैं विक नहीं सकता ! सूरज ऊपर चढ़ बाया है। कोहरा पूरी तरह छेट गया है। किरणें तिरछी होकर धरती पर पड़ रही हैं। सुनहरी धृप हरी घास पर फँलती जा रही है। घृप अच्छी लगी, साथ ही वैट में कुलबुलाहट होने लगी । रात 'फिसमस वकी खुशी मे वेतहाश! पी गया था। पीते-पीते खाने की सुध भी नहीं रहो थी। अब मिर भारो है ओर पेट में तीखी जलन हो रही है। अभी तक नाश्ता भी नहीं किया। नाश्ता ? मुझे फिर घर का खयाल था गया वह वैचारी इन्तजार में बैठी होगी। नाश्ता बना पढ़ा होगा भर चाय का थाती खोल रहा हीगा। सोच रही होगी--वह आयें तो नाश्ता हो वह्‌ ितना ध्यार करती है मुझे | सचमुच कितना प्यार ! दो मुट्ठी तो हाड़ हैं और उनमें ही इतना प्यार ! রা छूुपाकर रखती है ? प्यार और इस जपाने मे | कद तो प्यार सिर्फ पुराती कविताओं और पुराने उपन्यागों में ही मित्रता है। लेकिन वह अभी भी उसी जमाने मे जी रही है। उसके




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