चिक्क वीर राजेन्द्र | Chick Veer Rajendra
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्राक्कथनः
भारतवपं कौ एक बड विरेयवा यह टै শ্চি एक् देन टोने के साय-पाय उसमे एक
विस्तृत भूखम्ड को सभी विशेषठाएँ विद्यमान ह 1 “गंगे च यमुने चैव गोदावरि,
खरस्वद्वि नमेदे चिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधि कुद” 1 हमारे पूवंजस्नान के
समय इस इलोक के द्वारा अपनी पवित्र सात नदियों का कम-सैन््केम दिन में एक
बार स्मरण कर लिया करते थे । इत स्मरघ करनेवाले हजारों में से शायद ही
कोई ऐसा होगा जिसने गंगा के भी दर्शन किये हों और कावेरी को भी देखा हो
यथा जिमने कावेरी के भी दर्शन किये हों ओर उठी ने गंगा को भी देखा हो ।
इतनी विद्याल यह धरतो मपने घर, मीठि और संस्कृति के सूत्री के कारण सँकड़ों
वर्षों से एक रही है, पर क्लिर भी राजनीतिक एकता अभी हाल की ही चीडे है
हर प्रान्त का जीवन अपने-अपने ढंय का था | हर प्रान्त में अनेक राजघरटाते ये}
इसलिए प्रत्येक प्रान्द का इतिहास भी किसी देश के इतिहास के समान विस्तृत
था। इस बात का सवसे अच्छा उदाहरघ है राजस्थान ! राजपूतों की यह भूमि
भारत का एक ठोद्ान्सा हिस्सा है पर उसके भी दोसियों भाग हैं । प्रत्येक का
इतिहास एक राष्ट्र कै इतिहाष के समान विष्वृढठ भो है मौर ययोमय भी ! यं,
धमे, निष्टा, तेज, वरदा मौर श्रद्धा का उच भूमि में कितने सहज स्वाभाविक ढंग
में वि्रास हुआ है। साथ ही कुरोतियों, अविदेक, स्वायंपरता और लोभ का
चिकंजा भी कितना दिकट रहा है। यों 'बहुरत्ना वनुन्धरा' वालो कहावत सत्य
है ही परन्तु भारत-प्रूमि के सन्दर्भ में यह अक्षरशः टीझू है। किसी भी प्रान्त के
इतिहास को उठाकर देखा जाये तो वह मनोहारी और यद्योघवल भी है और राय
ही मार्गदर्शन भो करता है ।
छोटे-से कोडग प्रान्त के इतिहास में भी ये ठीनों बातें विशेष रूप से परि-
लित होती हैं। सह्याद्रि पद॑त थेघ्री वम्दई से शुरू होकर दक्षिय वी मोर चलती
है। रास्ते में पश्चिम समुद्र को ओर देखते हुए वह निरन्तर ऊँची होती লী আন
है और नीतपिरि में जा मिलती है। नीलग्रिरि में जा मिलने से पहले कोडग प्रदे८
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