त्रिपुरी | Tripuri
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ विदिशा
और अवन्ति ष्टी राजनीति में विदिशा का गौरय छुप अवश्य गया था,
परन्तु उसके ब्यापारिर महत्व में पोई फम्ी नहीं आई थी। अबन्ति से
मंगध ज्ञान वाले मार्ग पर विदिशा का स्थान व्यापारिय एर् युद्ध की
दृष्टि सं प्रधान था। साथ दो घौद्ध धम के यह मुस्य केन्द्रों में थी ।
মাত साम्राज्य स्वापित होने पर विदिशा का फिर राज्ञा करण से
मदृत्यपूर्ण सम्यम्ध स्थापित हुआ ! जबयमीय सम्राट फी ओर से युवराज
अशोह अपने यौवन फाक्ष में शअयन्ति प्रदेश के शासक पनरर आये तो वे
विदिशा भी गए । पद वे देवी नाम की श्रष्ठि कन्या पर अजुरफ़ हो गये,
इनसे उनके ঘলিগা লাল एक कन्या हुई । जय अशो# सम्राट पने तब
भी देधी विदिशा म द्वी रही । जिससे छ्ञाठ होता है कि অলাত शोर का
विदिशा आगमन हवांता रद्दा होगा | मौय फात मे विदिशा समृद्ध रिथित्ति
में था यह तो उस समय के अबरशेषा से ज्ञात होता &।
विदिशा के राजनीतिक मदत ना श्रप्ठतम फांस ई० पू० दूसरी
शतताव्दोी मे प्रास्म्म हुआ जब प्रवल प्रतापो पुप्प्रतित्र शुग ने भत्याचारी
एवं उयक्ष आत्म मोये राना बुहद्र॒थ को लगभग १८४ ६० पू० में मारकर
मगध दा राज्य श्रग्न धाय में क्॑ लिया । शु गा छा निवास स्थान হাহা
देश फी राजवात्ती यही विदिशा थी यद्यपि पुष्यमित्र ने अपने प्रवलल
प्रताप से पारत के बहुत बडे भांग फो अपन आवीन फर लिया धा परग
विदिशा से अपने निकट समय घ ই মাঘ रवरूप अपन बेटे अग्निमित्र फा
अपनी ओर से छसका शासक यनाया |
धुर्गा के राज्य में बलिफ এম জা पुनरथान हुब्ा, पुष्पमित्र न पुन
प्राच्रीय यक्ञा एपं भाषत्रत धर्म का भ्रचार दिया। विदिशा पामही गोन
मामत स्थाल में सिशासा, पाशिसि को अष्टाप्याथी पर सहआाप्प किखन
पूल पारनक्षि भी उमह यप्ता मे पुरादित यने थे। फुयमिश्न ने दा! पार
अखपेंघ और रा नसूय यश किए এ 1 হেশ্হা ম अनेक विधशु मंदिर
का निर्मा | हुआ | न मदिरां का शुगयशीय राभा मागमेद्र न निमाण
द्राया ।
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