रांगेय राघव की सम्पूर्ण कहानियां | Rangey Raghav Ki Sampurna Kahaniya

Rangey Raghav Ki Sampurna Kahaniya  by राजा राम मोहन रॉय - Raja Ram Mohan Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 रांगेय राघव की सम्पूर्ण कहानियां ठीक नहीं रहा ? आनन्दी चुपचाप निगाह नीची किये सुनती रही। रग्घू कहता रहा, “मैं नही मरा, तू नहीं मरी, जनम से ही तो दोनों देख रहे हैं एक दूसरे को, फिर एक यह अनोखा ही चल बसेगा | तीन-तीन, चार-चार दिन तक कुछ खाने को नही मिलता था, अब दो रोटी मिल जाती हैं तो ** आनन्दी काटकर बोली, “तब भीख मांगते थे, अब मेहनत-मजूरी करते हैँ । तव दूसरों की दया पर पलते थे, अब काम करते हैं। घर में रोटी रखकर कोई वच्च को भूखा नही मारता। मैं अपने बच्चे को ऐसे नहीं ले जाने दूंगी । रग्घू पशोपेश में पड़ गया। उसने पूछा, “तो चम्पा का क्‍या होगा ? बूढ़ी भूख्वी न मर जायेगी ? बच्चे पर दया करके लोग इस महंगाई में भी कुछ न कुछ दे ही देते हैं * आनन्दी एकदम बोल पड़ी, “आल के कारखाने में क्‍यों नहीं काम करती ? छ आने राजीना मिलते हैं, छः आने । अब तो बस आटा मिलता है, बासी रोटियां मिलती ओर उसके नयनो मं चित्र घूम गये । एक दिन ब्याह के बाद वह भीख मांगने गई थी। सुनार के बेटे ने मुस्कराकर कहा था --““अभी नहीं, संभा को अइयो । ओर माने के लालच में जब वह शाम को गई थी*** उसने कभी किसी से कुछ कहा नहीं था, रग्घू मे भी नहीं । किन्तु उसके वाद ही उमने 'मील' में नौकरी कर ली, जहां वह बस्ती की पतीस औरतों के साथ टोली बना- कर जाती थी, टोली बनाकर लौटती थी । लोग उनकी एक-सी लांगदार कत्थई साड़ी, उनके भारी पोले कड़े और काम के वजन से डगमगाई लंगड़ी चाल को देखकर उन पर हंसते थे, किन्तु वे आपस में हंसती थीं, बाबुओं को दूर ही दूर से ललचाई आंखों से देखती थीं, बबुआइनों पर डाह करती थीं, काली-काली गन्दी बदबूदार चम्पा बालक को उठाकर कुढ़ती फिर भोंपड़े की तरफ आ रही थी । आनन्दी जोर से कह उठी, “चम्पाबाई को चाट लग गई है बजार की, कारखाने में जायेगी ही क्‍यों वह'''जाय तो मिलें छः आने रोजीना, छ: आने ! ***/ चम्पा ने दरवाज पर ही से सुना और वह ककंदश स्वर से चिल्ला उठी, “चाट लग गई है मुझे और मील के मर्दों में भी तो मैं ही जाती हूं । मेरे तो बाप ने यही किया, मां ने यही किया, मैं भी यही करती रही हूं और करती रहूंगी। मैं कोई बल नहीं, गधा नहीं सदा की रीति चली आई है। बस्ती में अब नहीं वंसे आदमी जैसे पहले थे । दो पेसा क्‍या हाथ में आ गया है, घमण्ड करने चली है ठमको ! “गधा नहीं तो कुत्ता बनकर रह ना। क्या अच्छी बात कही है मेरी सास ने ! आनन्दी क्रोध से फूंकार उठी । “तो बेटी, हम कुत्ता हैं तो तेरे बाप भी कुत्ता थे, और तेरी महतारी भी कुतिया थी ৮৬৪7 आनन्दी “बाप कुत्ता थे! सुनकर तो चुप रही। मगर मां का कुतिया होना सुनकर




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