राजा राममोहन राय जीवन और दर्शन | Raja Rammohan Ray Jeevan Aur Darshan
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कार्तिक चन्द्र दत्त - Kartik Chandra Datt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राममोहन का भारत -देश-काल [| 21
अठारहवीं शरती में भारत की भूमि पर दो अलग-अलग आथिक और राज-
नेतिक व्यवस्थाओं की टक्कर हो रही थी। यूरोप के लोग अपनी विद्या और
बुद्धि के जोर पर सारे व्यापार को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहे थे ।
इधर भारतीय अपने हासोन्मृख सामन्तवादी व्यवस्था के घेरे में थे । पलासी'
के युद्ध ने यूरोपियन सैनिक शक्ति और अस्त्र-शस्त्रों की श्रेष्ठता को प्रमाणित
कर दिया । शीघ्र ही यूरोपियनों की व्यापारिक बस्तियाँ सैनिक छावती में
बदलती जा रही थीं । यूरोपीय लोग एक ओर सफल व्यापारी थे तो दूसरी ओर
सफल सैनिक, राजनीतिज्ञ, बाद में प्रशासक भी बने । इंगलैण्ड और फ्रांस की
राजनैतिक प्रतिस्पर्धा से इस देश की राजनीति भी उल्नग्न गई। दक्षि ओर
पश्चिम भारत में फ्रांस, इंगलेण्ड और मराठों के बीच काफी दिनों तक कशमा<
कश चलती रही । इधर दिल्ली के बादशाहु शाहआलम के 1765 के फरमान
के द्वारा ईस्ट इण्डिया कंपनी को सुबे बंगाल का दीवानी अधिकार प्राप्त हो
गया । बदले मेँ दिल्ली सल्तनत को सालाना करकी छोटी-सी राशि देने की
बात तय हो गई । राजस्व छदायगी ओर सुरक्षा कौ जिम्मेदारी कंपनी को सौप
दी गयी । राजस्व वा छोटा सा हिस्सा बंगाल को निजामत को भी मिलता
रहा और बाकी सारा भाग कंपनी के हिस्से का था। कंपनी रातों-रात माला-
माल हो गई। वारेन हेस्टिग्स के राजत्व के दौरान ब्रेटिश शासन का और
विस्तार हुआ । मराठों में फूट पड़ गई और उनका रज्य छोटे-छोटे दुबड़ों में
बट गया । मैसूर थ॑ हैदरअली की सारी उम्मीदों पर पाती फिर गया था।
कार्नवालिस ने दक्षिणी राज्यों को हड़पने में और टोपू को हराने में सफलता
प्राप्त की । अठारहबों शताब्दी के अन्तिम चरण में सारा दक्षिण भारत वस्तुत:
ईस्ट इण्डिया कंपनी की छत्नछाया के नीचे आ गया । उत्तर भारत में बंगाल से
लेकर मुगल साम्राज्य की राजधानी दिल्तीके दरवाजे तके अंगरेजी साम्राज्य
का प्रभुत्व फल चुका था ।
एक बार फिर सुबे बंगाल के इतिहास की ओर दृष्टि डाली जाय । क्योकि
अठारहवी शती में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के इतिद्वास में तत्कालीन बंगाल
का इतिहास सबसे महत्वपूर्ण है। यहीं साम्राज्य विस्तार की पहली सीढ़ी थी ।
वक्त गुजरते देर नहीं लगती । ईस्ट इण्डिया कंपनी जो केवल व्यापार के लिए
आई थी, सूबे बंगाल का शासक बन बेठी। मुशिदाबाद के नवाब केवल नाममात्र
के सुल्तान बने रहे | 1765 के बादशाही फरमान का एक नतीजा यह हुआ कि
ब्रिटिश व्यापारियों के अलावा जो दूसरे यूरोपीय व्यापारी जेसे डच, फ्रांसीसी,
पुतंगाली आदि थे, उन सभी के व्यापार में रुकावर्ट खड़ी होने लगीं। ये
व्यापारी दो एक छोटे-छोटे केन्द्रों को छोड़ भाग. खड़े हुए । विदेशी व्यापारियों
में एक लम्बे समय तक कशमकश चलती रद्ी थी। अन्तमं ब्रिटिश व्यापारी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...