रविन्द्रनाथ की कहानियाँ | Ravindranath Ki Kahaniyan

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Ravindranath Ki Kahaniyan  by रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ रबोीनानाथ की कहानियाँ का प्रवसर मिला तो प्रवर्णनीय हर्ष भौर मुक्ति के साथ उसने प्रमुभव किया कि भ्रभी भी एक प्रात्मा है जिसे वह ग्रपनी कह सकती है। भ्रपने पति को लिखा गया उसका पत्र--यह कहानी पत्र के रूप में ही लिखी गई है--उसके कभी न लौटने के दृढ़ निश्चय की घोषणा के साथ समाप्त होता है, यह पत्र पुरुष के उत भ्रन्यायों, नीचताओं भौर निर्देयता के सम्पूर्ण इतिहास पर, एक कटु निर्णय है, जो परंपरा के रूप में भ्रप्रतिहत भात्र से माने जाते थे तथा प्रथा के कारण पवित्र समभे जाते थे । इस युग की भ्रन्य झनेक कहानियों में इस विषय के भ्रनेक रूपान्तर भितते हैं, क्योंकि समाज में महिलाओं का स्थान तथा नारी जीवन की विशेषताएँ उनके लिए गंभीर चिता के विषय थे श्रौर वे इस युग में बराबर उनके विचारों के विषय बने रहे । रवीन्द्रनाथ की कहानियों की पूर्ण समीक्षा के लिए विस्तृत स्थान की ग्रावश्यकता है। उनकी कहानियों के इस प्रत्यंत श्रपूर्ण पर्यवेक्षण को यहीं समाप्त करना उचित होगा । वास्तव में उनकी कहानियों के परिचय की प्राव- दयकता नहीं है, वे भ्रपने विषय मे स्वयं बहुत भ्रच्छी तरह बता सकती है । मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रनुवाद मे भी उनके प्रमर सौद्यं का कुछ भाग पाठक के हृदय का हषं के साथ स्पक्षं करेगा, प्रौर क्योकि मानव-स्वमाव सर्वत्र एकं समान है, भ्रतः मारत के विभिन्न भागों के पाठक हन पात्र मँ-ंग-मूमि के पुत्र-पुत्रियों में--भ्रपने सगे-संबंधियों की परिचित रूप-रेखाएँ पायेंगे । २० सित' बर ११४५६ --सोमनाथ मंत्र




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